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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

अरविन्द जी को समर्पित .............


ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के,
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कह रही रही है झोंपड़ी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के,
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बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के,
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कफन बंधे हैं सरों पर हाथ में तलवार है
ढूंढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे गाँव के,
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एकता से बल मिला है झोंपड़ी की साँस को
आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के,
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हर रूकावट चीखती है ठोकरों की मार से
बेड़ियाँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के,
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दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ऐ-इंक़लाब
हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे गाँव के,
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देख लो अब जो सुबह दिखती है फीकी आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के

जय हिंद

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