अब तक सरकार से अपनी मांगे मनवाने के लिए हम सब ने बहुत अनशन किये, और
इन्ही अनशन और आन्दोलनो की बदौलत देश की जनता अन्याय के खिलाफ एकजुट हुई.
देश की सोच में एक सामूहिक साहस पैदा हुआ जो किसी भी प्रकार के अनाचार के
खिलाफ अपने हाथ भारतमाता की जय के साथ उठाने लगा!
माहौल ऐसा बना कि 65 साल के इतिहास में पहली बार हिन्दुस्तान की तरुणाई अपनी बहिन-बेटी दामिनी को इन्साफ दिलाने के लिए एक जनसैलाब की शक्ल में सूरज की पहली किरण के साथ महामहिम के दरवाजे पहुँच गयी ! लाठी, गोली, दमन के हर अवरोध को पार करती हुई ये "जनता जनार्दन" एक दुसरे के हाथ में हाथ डाल कर इन्कलाब का प्रतीक बन गयी !
जनता के अन्दर का डर तो कम हुआ और वो हुजूम में भ्रष्टाचार का विरोध करने भी लगी, पर अब भी व्यक्तिगत रूप से आम आदमी के दिल में खौफ, झिझक है. हम "हम विरोध करते है" तक तो पहुँच गए हैं ,पर अब भी "मैं विरोध करता/करती हूँ" की मंजिल को हमें पाना है. इसी "हम से मैं " तक का सफ़र तय करना है.
ये "उपवास" सरकार के लिए नहीं है क्यूँकी ऐसी गूंगी-बहरी सरकारों से उम्मीद देश छोड़ चूका है, ये किसी शर्त को मनवाने के लिए नही है. ये आम आदमी के मन से व्यक्तिगत स्तर पर भय निकालने की साधना है. ये साधना है इस उद्घोष कि जो युग-शिक्षक स्वामी विवेकानंद जी ने याद दिलाया था कि उठो,जागो और जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये कर्मशील रहो !
माहौल ऐसा बना कि 65 साल के इतिहास में पहली बार हिन्दुस्तान की तरुणाई अपनी बहिन-बेटी दामिनी को इन्साफ दिलाने के लिए एक जनसैलाब की शक्ल में सूरज की पहली किरण के साथ महामहिम के दरवाजे पहुँच गयी ! लाठी, गोली, दमन के हर अवरोध को पार करती हुई ये "जनता जनार्दन" एक दुसरे के हाथ में हाथ डाल कर इन्कलाब का प्रतीक बन गयी !
जनता के अन्दर का डर तो कम हुआ और वो हुजूम में भ्रष्टाचार का विरोध करने भी लगी, पर अब भी व्यक्तिगत रूप से आम आदमी के दिल में खौफ, झिझक है. हम "हम विरोध करते है" तक तो पहुँच गए हैं ,पर अब भी "मैं विरोध करता/करती हूँ" की मंजिल को हमें पाना है. इसी "हम से मैं " तक का सफ़र तय करना है.
ये "उपवास" सरकार के लिए नहीं है क्यूँकी ऐसी गूंगी-बहरी सरकारों से उम्मीद देश छोड़ चूका है, ये किसी शर्त को मनवाने के लिए नही है. ये आम आदमी के मन से व्यक्तिगत स्तर पर भय निकालने की साधना है. ये साधना है इस उद्घोष कि जो युग-शिक्षक स्वामी विवेकानंद जी ने याद दिलाया था कि उठो,जागो और जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये कर्मशील रहो !
ये आपको किसने कह दिया कि 65 सालो मे केवल अभी आन्दोलन शुरु हुआ . जब से अग्रेज आये आन्दोलन तो तभी से शुरु हो गया लेकिन 47 के बाद लोगो को लगा कि अब हम एक नये भारत मे कदम रख लिया लेकिन बहुत बडी मिथ्या सोच मे डुबे रह गये तब लगा कि ये आजादी तो झुठी है फिर आये जयप्रकाश नारायण आदि . उनको भी लगा कि हमारा आन्दोलन बेडा पार कर ही देगा . पार्टि बनाई . और आज वही पार्टी इसी भ्रष्ट व्यवस्था का पैर है , आपका आन्दोलन तो मिडिया के रहमो करम पर टिका था लेकिन इनके दौर मे तो मिडिया का नामोनिशान न था. इसके बाद भी इनका आन्दोलन देशव्यापी था.
जवाब देंहटाएं'' आप '' समर्थको ये बात स्वीकार कर लो कि आप भी इसि भ्रष्ट व्यवस्था का भाग बन चुके हो . अब हमे इस व्यवस्था को बदलने के लिये एक और योद्धा का इन्तिजार करना होगा .
VIREDRA RATHORE HME MT BTAAO HME KYA KRNA HAI KYA NHI AGR KHUD KUCH NHI KAR SKTE TO DUSRO PAR TIPPNI MT KRO
जवाब देंहटाएंARVIND SIR ALWAYS RIGHT..
AAP ZINDABAD..
BJP KE CHMCHE VIREDRA RATORE MURDABAD....
देखो अरविन्द की चमची मै आज तक किसी पार्टी का सपोर्ट नही किया .मै सिर्फ भारतिय सन्स्कारो वाला व्यक्ति हु और ऐसा भी नही था कि अन्ना आन्दोलन मे हम चुप बैठे थे पुरा साथ दिये . लेकिन जब से इनकि टिम को सेक्युलर किडा काटा है तब से हमारे जैसे बहुत लोग इनसे दुर हो गये but you murdabad desi CHAMCHI
हटाएंहाँ अन्ना आन्दोलन में साथ दिया क्युकी ऐसा लग रहा था तुम्हे की ये आन्दोलन बीजेपी को फायदा पहुचायेगा तुम्हारे अंदर देश भक्ति नही बीजेपी भक्ति हुलारे मार रही थी उन दिनों..
हटाएंतुम अपने दम इतने सालो से सत्ता में जो नही आ पाए थे तो लगा एक ७४ साल का वर्ध अनसन कर रहा है..
तुम्हारा तो उन दिनों एक ही नारा था भगवान के भरोसे सब काम हो रहा है.. करता है कोई और अपना नाम हो रहा है...
जिस दिन तुम्हे लगा ये आन्दोलन बीजेपी को फायदा नही पहुचायेगा तुम इसकी आलोचना करने लगे....
इस देश मे ये श्रेय लेने कि बिमारि कुछ ज्यादा हि नजर आति है . आन्दोलन यदि निश्वार्थ और समाज कल्याण के लिये होता तो आन्दोलन करने वाले महामानव को अपनि महत्ता चिन्हान्कित करने की आवश्यकता ही नहि होति . ये लोग बस इसी बात मे मर गये कि दिमाग हमारा था फायदा कोइ और ले रहा . जबकि इतिहास गवाह है कि जिसका कर्म है श्रेय भि उसि को मिलता है . हमे लगता है कि इन सेक्युलर [ मात्रिभाशा मात्रिभुमि मात्रिसन्स्क्रिती को हीन समझने वाले लोग ] नेहरु नीति वाले नोबेल पुरुश्कार जैसे कोइ अवार्ड कि चाह रखने के कारण विदेशि लोग क्या सोचेन्गे यही सोचकर हि उसि रास्ते पर चले जीस रास्ते मे चलने के कारण भारत की ये दुर्दशा है .
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