धर्म के नाम पर राजनीति करके अंधेर मचा देने
वाली राजनैतिक पार्टियों और उनके अडानी-अम्बानी वाली दूकानों के ठेकेदारों
से दूर देश में अब भी उम्मीद की किरण देर सवेर दिख ही जाती है! सीमा पर
अपनी जान दाव पर लगाकर हमे सुरक्षित और सूकुन भरी जिंदगी देने वाले जवानों
की शहादत पर भले हमारी सरकार, प्रधानमंत्री "कड़ा रुख" नाम का झुनझुना
बजाकर चुप हो जाते हो, पर देश इन शहीदों की कुर्बानी का पूरा सम्मान करता
है, इसी बात का सबूत अजमेर शरीफ दरगाह के प्रमुख 'जैनुअल अबेदीन अली खान'
ने दिया.
खान साहब ने पाक प्रधानमंत्री की अगवानी से साफ़ इनकार करते हुआ कहा कि पडोसी मुल्क के पीएम शहीदों के परिवार से सान्तवना जताने जाएँ, न कि दरगाह पर आयें, अच्छा होता अगर वो हमारे 2 शहीदों के कलम किये सिर अपने साथ ले आते.
ये उन धर्म की आंच पर अपनी रोटी सेकने वाले उन राजनेताओं के गाल पर करारा तमाचा है,जो अपनी वोट की भूख मिटाने के लिए हिन्दू मुस्लिम सद्भावना के साथ खिलवाड़ करते हैं.
जब अपनी बातों पर कार्यवाही का वक़्त आता है तो ना ही सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ नेता कुछ बोलते हैं ना ही तथाकथित हिन्दू ह्रदय सम्राट.
निराश करने वाली बात ये है कि सरकार को पाक से अपने संदिग्ध और झूठी मित्रता शहीदों की शहादत से भी प्यारी है, इसीलिए खुर्शीद ने खान साहब के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि पाक के प्रधानमंत्री को दरगाह में प्रवेश से रोकना जायज़ नही है, इसलिए उन्हें सम्मान के साथ दरगाह में आने देकर शांति और भाईचारे का सन्देश दें.
काश खुर्शीद यही भाईचारा और सद्भावना अपने देश के लोगों में बनाने की पैरवी करते. बैसाखी चुरा कर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं के खून से खेलने या जिंदा वापस न जाने देने की धमकी देने वाले खुर्शीद साहब अब इतनी लल्लों-चप्पो में क्यूँ लगें हैं ?
यह खेल हमारी समझ से परे है. आपको क्या लगता है, वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
खान साहब ने पाक प्रधानमंत्री की अगवानी से साफ़ इनकार करते हुआ कहा कि पडोसी मुल्क के पीएम शहीदों के परिवार से सान्तवना जताने जाएँ, न कि दरगाह पर आयें, अच्छा होता अगर वो हमारे 2 शहीदों के कलम किये सिर अपने साथ ले आते.
ये उन धर्म की आंच पर अपनी रोटी सेकने वाले उन राजनेताओं के गाल पर करारा तमाचा है,जो अपनी वोट की भूख मिटाने के लिए हिन्दू मुस्लिम सद्भावना के साथ खिलवाड़ करते हैं.
जब अपनी बातों पर कार्यवाही का वक़्त आता है तो ना ही सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ नेता कुछ बोलते हैं ना ही तथाकथित हिन्दू ह्रदय सम्राट.
निराश करने वाली बात ये है कि सरकार को पाक से अपने संदिग्ध और झूठी मित्रता शहीदों की शहादत से भी प्यारी है, इसीलिए खुर्शीद ने खान साहब के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि पाक के प्रधानमंत्री को दरगाह में प्रवेश से रोकना जायज़ नही है, इसलिए उन्हें सम्मान के साथ दरगाह में आने देकर शांति और भाईचारे का सन्देश दें.
काश खुर्शीद यही भाईचारा और सद्भावना अपने देश के लोगों में बनाने की पैरवी करते. बैसाखी चुरा कर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं के खून से खेलने या जिंदा वापस न जाने देने की धमकी देने वाले खुर्शीद साहब अब इतनी लल्लों-चप्पो में क्यूँ लगें हैं ?
यह खेल हमारी समझ से परे है. आपको क्या लगता है, वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें