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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

इस भीषण युद्ध में भारतीय वीरों ने पाक को चटाई थी धूल, अमेरिका हुआ शर्मसार

खेमकरण।सितंबर के महीने में 1965 में पंजाब की धरती पर एक ऐसा युद्ध लड़ा गया जिसमें भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरीके से हराया और अमेरिका को इस युद्ध में शर्मसार होना पड़ा। 


भारत और पाकिस्तान के बीच की 1965 की लड़ाई अप्रैल महीने में शुरू हुई और सितंबर तक चली। इसे कश्मीर का दूसरा युद्ध भी कहा जाता है। सितंबर के महीने में खेमकरण सेक्टर में आसल उताड़ की लड़ाई निर्णायक लड़ाईयों में से है जिसमें पाकिस्तान के लगभग 100 टैंको को भारतीय वीरों या तो नष्ट कर दिया या कब्जे में लिया।









इन M48 टैंकों को पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदा था। इसलिए इस युद्ध में टैंकों के बुरे हाल के बाद अमेरिका को शर्मसार होना पड़ा। 8 से 10 सितंबर तक चले निर्णायक भीषण लड़ाई में भारतीय वीरों ने पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेल दिया।

इस युद्ध को असल उत्तर(वाजिब जवाब) के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। युद्ध में भारतीय सेना लाहौर के करीब पहुंच चुकी थी। उधर लाहौर पर दवाब कम करने के लिए छह सितंबर को जब पाकिस्तानी सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा से पांच किलोमीटर अंदर आकर खेमकरण पर कब्जा कर लिया तो उसके बाद भारतीय सेना को प्रतिआक्रमण करने पर मजबूर होना पड़ा।

वहां से पाकिस्तान ने उत्साहित होकर बड़ी संख्या में टैंकों और आर्मी इंफैंट्री के साथ भारतीय सीमा में और अंदर घुसना शुरू कर दिया। भारतीय सेना ने बेहतर रणनीति के साथ लड़ाई की और पाकिस्तान को धूल चटा दिया। युद्ध के इतिहासकार इसे भारत-पाक 1965 वार का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं जिसके बाद युद्ध में भारत का पलड़ा बहुत भारी हो गया। इसे पाकिस्तान के इतिहास में उसकी सबसे बड़ी हार मानी जाती है।

इसमें पाकिस्तान की फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन और एलेवंथ इंफैंट्री शामिल थी। जब इंटरनेशनल बॉर्डर पार कर वह खेमकरण में घुसी तो इधर भारतीय सैनिक इस क्षेत्र के कोने-कोने में भर गए और पाकिस्तानी सेना से मुठभेड़ करने लगे। 100 पाकिस्तानी टैंकों को या तो भारतीय शूरवीरों ने नष्ट कर दिया या कब्जे में कर लिया। इससे अमेरिका को भी बड़ा झटका लगा क्योंकि इन टैंकों में उनके पैटन और शरमन टैंक शामिल थे

इस एरिया में पहले पाकिस्तानी सैनिकों को पहले थोड़ी-बहुत सफलता मिली लेकिन आखिरी जीत भारत की हुई। एक इतिहासकार के अनुसार. पाकिस्तान ने भी यह स्वीकार किया उसके 165 टैक इस युद्ध में नष्ट हुए जिसमें से आधे से ज्यादा का नुकसान आसल उताड़ के वार में हुआ।






इस युद्ध की खास बात यह रही कि पाकिस्तान के भूतपूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ इसमें लड़े। इसमें वह फर्स्ट आर्मर्ड डिविजन आर्टिलरी में लेफ्टिनेंट थे। इस युद्ध को सबसे ज्यादा याद किया जाता है अब्दुल हमीद की वीरता के कारण। इसमें अब्दुल ने अकेले ही पाकिस्तान के सात टैंकों को नेस्तोनाबूद कर दिया था। इस शहीद को परमवीर चक्र का सम्मान मरणोपरांत दिया गया।

आसल उताड़ के युद्ध का मैदान पाकिस्तान के नष्ट हुए टैंकों से भर गया। इन टैंकों को पैटन टैंक कहा जाता है इसलिए इस पूरे इलाके को नाम दिया गया पैटन टाउन यानी पैटन नगर। इस युद्ध के सभी शूरवीरों को सलाम।





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