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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

"आज वो काबिल हुए, जो कभी काबिल ना थे,

"आज वो काबिल हुए,
जो कभी काबिल ना थे,
और मंजिलें उनको मिली,
जो दौड़ में शामिल ना थे...."

दोस्तों, आज सत्ता के उच्चतम शिखर पर वो लोग विराजमान हैं जो भावशून्य, संवेदनहीन और निष्ठुर हो चुके हैं....उनकी नज़रों में आम आदमी की जिन्दगी, उसकी इज्ज़त, उसका वजूद, उसका दर्द, उसकी बेबसी, उसकी जद्दोजहद, उसकी इच्छाएं, उसके सपने, उसकी उम्मीदें कोई मायने नहीं रखती हैं....

ये मौजूदा व्यवस्था और इसे चलाने वाले हमारे प्रतिनिधियों की जमात वाकई में महात्मा गाँधी के तीन बंदरों (उसूलों) पर तो पूरी तरह खरी उतरती है ही , साथ ही साथ ये एक चौथे बन्दर की भांति भी हो गयी है जिसे यही नहीं पता कि उसे देश के लिए करना क्या है और किस दिशा में लेकर जाना है ??

क्या कहा था गाँधी जी ने- यही ना कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो !!

इन भ्रष्ट नेताओं को कोई बुराई नज़र ही नहीं आती- ना भ्रष्टाचार नज़र आता है, ना रिश्वत, ना मंहगाई, ना आतंकवाद, ना बेरोज़गारी, ना बलात्कार, ना दंगे, ना टूटी सडकें, ना पॉवर-कट, ना पानी की समस्या, ना मिड डे मिल की लूट, ना डाक्टरों और दवाइयों से रिक्त अस्पताल, ना अध्यापकों से रिक्त स्कूल, ना सड़कों पर दहशत फैलाते गुंडे और ना ही खलनायकों की तरह बेबस, लाचार और निहत्थे शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते लोगों पर लाठी बरसाते पुलिस वाले....

और ना ही इन्हें सुनाई देती है इज्ज़त लुटी जा रही बच्चियों और औरतों की चीख, ना इलाज़ की कमी से मरे मरीज़ के परिवार वालों का क्रंदन, ना भूख से बिलबिलाते बच्चे, ना पति से मार खाती औरत का बिलखना, ना शहीदों की विधवाओं की कराह, ना दंगों में मारे गए लोगों के स्वजनों का विलाप, ना चुपचाप रोते असहाय बेरोजगार युवा और ना ही अदालतों में बरसों तक लटके केसों में उलझे लोगों का सिसकना... यहाँ तक सड़क पर अपना हक मांगने आई आवाम की आवाज़ भी नहीं सुनाई देती इन्हें...

और रही बात बुरा कहने की तो जिस किसी ने भी इस भ्रष्ट तन्त्र के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उस आवाज़ उठाने वाले को ही बुरा-भला कहा जाता रहा, उन्हें बदनाम किया जाता रहा, उन्हें सरकारी एजेंसियों से प्रताड़ित किया जाता रहा, उन्हें तोड़ने की कोशिश, पुलिस की लाठियां, उसके आसूं गैस के गोले, उनपर झूठे केस....देश की आवाज़ को उठाने वालों को ही गद्दार कहा जाता है और उन्हें देश के लिए खतरा बताया जाता है....

और तो और इन्हें पता ही नहीं कि इन्हें करना क्या है- इस देश को कैसे फिर से “सुजलाम, सुफलाम “ की और ले जाना है.. इन लोगों के पास कोई दूर-दृष्टि नहीं, कोई योजना नहीं, कोई बड़ा लक्ष्य नहीं...अगर कुछ है तो वो है कि किस तरह ज्यादा से ज्यादा धन लुट लिया जाये, कैसे सत्ता की ताक़त का रुआब दिखाया जाये और कैसे अपने परिवार का भला करते हुए अपनी सात सौ पीढ़ियों तक का उद्धार किया जाये....

तो क्यों झेल रहे हैं हम इन लोगों को- आखिर क्या मज़बूरी है कि फिर से इन्ही लोगों को चुन कर भेज देते हैं आप फिर से संसद और विधानसभाओं में अपना प्रतिनिधि बनाकर ???

क्या अब ये सब सड़ी -गली व्यवस्था बदलने का वक़्त नहीं आ गया है ?? क्या हम एक नए विकल्प "आम आदमी पार्टीयाँ" के आने बाद भी नहीं बदलेंगे ??




आखिर कब तक हम नाकाबिल लोगों को चुनते रहेंगे और गाते रहेंगे, दोहराते रहेंगे किसी कवि की इन पंक्तियों को साल –दर-साल, सदियों तक कि-

"आज वो काबिल हुए,
जो कभी काबिल ना थे,
और मंजिलें उनको मिली,
जो दौड़ में शामिल ना थे...."

डॉ राजेश गर्ग.
garg50@rediffmail.com

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