Translet

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

फेसबुक पर आजादी की जंग छेड़ने वाली श्रेया से मिलिए

देश में सोशल नेटवर्किंग साइट खासकर फेसबुक पर हम खुलकर अपनी बात कह सकें, इसके लिए दिल्ली की स्टूडेंट श्रेया सिंघल की मुहिम रंग लाती दिख रही है। चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने श्रेया सिंघल की उस जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है, जिसमें उन्होंने आईटी ऐक्ट के सेक्शन 66 (A) को असंवैधानिक बताया था। 66 (A) में बदलाव पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अहम सुनवाई करेगा। गौरतलब है कि आईटी ऐक्ट की धारा 66 (A) के तहत ही एक फेसबुक कॉमेंट पर दो लड़कियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। आइए आपको मिलवाते हैं श्रेया सिंघल से... 


21वर्षीय श्रेया सिंघल दिल्ली की रहने वाली हैं। पढ़ाई के लिए ब्रिटेन गईं श्रेया कुछ महीने पहले भारत लौटी हैं। श्रेया ने दिल्ली के वसंत वैली स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में तीन साल तक एस्ट्रोफिजिक्स की पढ़ाई की। एक साल के गैप इयर में वह घर लौटीं और लॉ स्कूल के लिए अप्लाई करने लगीं।

बकौल श्रेया, जब से वह भारत लौटी हैं, इत्तेफाक से तभी से एक के बाद एक फेसबुक पोस्ट करने को लेकर गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। 9 सितंबर को मुंबई में असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी से वह दंग रह गईं। श्रेया के मुताबिक वह इस तरह की खबरें पढ़कर थक गई थीं। असीम की गिरफ्तारी से उनका ध्यान आईटी ऐक्ट के दुरुपयोग पर गया, लेकिन लगा कि बात यहीं पर खत्म हो जाएगी।


श्रेया बताती हैं कि पुडुचेरी में जब वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे की आलोचना पर और फिर पिछले हफ्ते ठाकरे पर फेसबुक कॉमेंट पर दो लड़कियों की गिरफ्तारी हुई, तो उन्होंने इस मामले को उठाने की ठान ली। श्रेया ने बताया कि इस मामले पर उनकी सुप्रीम कोर्ट में अपनी वकील मां मनाली से काफी बहस हुई। उनकी मां ने उनसे इस मामले में पीआईएल फाइल करने की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने वकील की मदद से पीआईएल फाइल की।

श्रेया बताती हैं कि वह ऐक्टिव फेसबुक यूजर नहीं है, लेकिन वह एक ऐसी स्टूडेंट हैं, जो हमेशा मन की बात खुलकर कहने के पक्ष में हैं। श्रेया के मुताबिक विचारों का इजहार करना कुछ ऐसा ही है, जैसे हम हर चीज करते हैं, नहीं तो हम एक खामोश समाज बनकर रह जाएंगे।

श्रेया ने दलील दी है कि कानून की धारा 66ए की शब्द रचना बहुत व्यापक और अस्पष्ट है। यह उद्देश्य का मानक निर्धारित करने में अक्षम है। याचिका में कहा गया है, चूंकि इस वजह से इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है। श्रेया ने याचिका में कहा है कि अगर अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में आपराधिक कानून पर अमल से पहले न्यायिक मंजूरी को जरूरी नहीं बनाया गया तो अंकुश लगाने के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें