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बुधवार, 2 जनवरी 2013

दिल्‍ली के बर्बर इस क़दर बेख़ौफ़ क्‍यों?

 लेखक कविता
दिल्‍ली पुलिस की ''हेल्‍पलाइनों'' की कड़वी असलियत - एक अनुभव  कोई भी यह उम्‍मीद करेगा कि 16 दिसंबर के गैंगरेप की बर्बर घटना और उसके बाद उमड़े जनआक्रोश के कारण कम से कम कुछ समय तक तो पुलिस और सरकारी मशीनरी थोड़ी संवेदनशील और चुस्‍त-सतर्क रहेगी। लेकिन हक़ीक़त एकदम उलट है। पिछले कुछ दिनों में कई स्त्रियों से ऐसे अनुभव सुनने को मिले और कल शाम से हम लोग ख़ुद इस कड़वी सच्‍चाई से रूबरू हो रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से स्‍त्री मुक्ति लीग की ओर से हम कई साथी दिल्‍ली के अलग-अलग इलाकों में इस घटना को लेकर प्रदर्शन, सभाएं और पर्चे बांटने का काम कर रहे हैं। इसी से बौखलाए एक बीमार मस्तिष्‍क का पुरुष कल शाम से स्‍त्री मुक्ति लीग के फोन नंबर (जो पर्चे पर छपा है) पर फ़ोन करके लगातार धमकियां, गाली-गलौच और अवर्णनीय रूप से अश्‍लील बातें कर रहा है। उसने सीधे यह भी कहा कि मैं तुम सब लड़कियों को पहचानता हूं और तुम लोग मुझसे बच नहीं सकतीं। मैं तुम्‍हारा वह हाल करूंगा कि लोग दहल जाएंगे। और भी ऐसी बातें जो दोहराई नहीं जा सकतीं...।

जब हम लड़ने के लिए सड़क पर उतरे हैं तो ऐसी धमकियों से डरने का तो सवाल नहीं है, हां, मर्दवादी सोच कितनी घिनौनी हो सकती है यह सोचकर उबकाई ज़रूर आती है... लेकिन दिल्‍ली पुलिस का बर्ताव हमारे लिए ''शॉकिंग'' है। इसलिए इसे आपके साथ साझा करना मुझे ज़रूरी लगा। मैं संक्षेप में तथ्‍यों का ब्‍योरा नीचे दे रही हूं।

कल, 1 जनवरी की शाम 6:46 मिनट से 8505898894 नंबर से मुझे फ़ोन आया जिसने फ़ोन उठाते ही बेहद भद्दी ज़बान में गालियां बकना और धमकाना शुरू कर दिया। एक बार काट देने के बाद उसने फिर फ़ोन करके और भी घटिया धमकियां देनी शुरू कर दीं। यह सिलसिला 2-2, 3-3 मिनट के अंतर से रात के 1:08 बजे तक चलता रहा। बीच में हम लोगों ने उसे फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन उसने फ़ोन काट दिया। एक बार 8:46 मिनट पर जब उसने फ़ोन किया तो मैंने उससे कहा कि हम लोगों ने पुलिस में शिकायत की है और तुम्‍हारा नंबर ट्रेस किया जा रहा है। इतना सुनते ही उसने फिर गाली-गलौच शुरू कर दी और उसके बाद भी देर रात तक उसके फ़ोन आने का सिलसिला जारी रहा।

हेल्‍पलाइनों की हेल्‍पलेसनेस!

कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार दिल्‍ली पुलिस की नई हेल्‍पलाइन 181 से रात 9:03 बजे संपर्क हुआ। वहां बैठे किसी पुरुष कर्मचारी ने बताया कि आपकी शिकायत दर्ज कर ली गई है लेकिन हम अभी शिकायत नंबर नहीं दे सकते, उसके लिए आपको कल दिन में 12 बजे संपर्क करना होगा। फिर उसने एक दूसरा नंबर 27891666 और 1096 देकर कहा कि शिकायत नंबर चाहिए तो इन पर फ़ोन कर लीजिए। 1096 (अश्‍लील कॉल तथा पीछा करने संबंधी हेल्‍पलाइन) को दर्जनों बार फ़ोन करने पर भी 'इनवैलिड नंबर' बताया जाता रहा। रात 9:11 पर 27891666 पर शिकायत दर्ज करके नंबर दिया गया - 36A-1. उसके बाद भी 8505898894 नंबर से लगातार आती फ़ोन कॉल्‍स से तंग आकर मैंने 181 पर फिर फोन करने की कोशिश की - एक बार फोन उठाया गया लेकिन पूरी बात सुने बिना काट दिया गया। उसके बाद मैं रात तक कई बार 181 पर फोन करने की कोशिश करती रही लेकिन किसी ने उठाया ही नहीं।

आज सुबह 9:17 और 9:18 मिनट पर फिर 181 को ट्राई किया लेकिन वही 'नो रिस्‍पांस'! आखिरकार मैंने आज सुबह 9:30 पर दिल्‍ली पुलिस के मुख्‍य जनसंपर्क अधिकारी राजन भगत को उनके मोबाइल नंबर पर कॉल करके सारी घटना की जानकारी दी और शिकायत नंबर बताया। मैंने बताया कि मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हूं, तो उन्‍होंने कहा कि पहले आप 1096 पर शिकायत दर्ज कराके मुझे उसका नंबर दीजिए। मैंने फिर तीन अलग-अलग नंबरों से 1096 नंबर पर ट्राई किया लेकिन हर बार वही 'इनवैलिड नंबर' बताया जाता रहा। राजन भगत को जब इसकी जानकारी दी तो उन्‍होंने लगभग झिड़कते हुए कहा कि ऐसा हो नहीं सकता। मैंने कहा कि आपके पास एक शिकायत पहले से दर्ज है आप उस पर तो कार्रवाई कर सकते हैं। इस पर उन्‍होंने फोन काट दिया।

फिर मैंने दिल्‍ली पुलिस की वेबसाइट से 1096 का वैकल्पिक नंबर 27894455 लेकर उसपर कॉल किया तो उसी महिला पुलिसकर्मी से बात हुई जिस पर कल 181 से दिए गए नंबर पर बात हुई। उसने बताया कि नंबर ट्रेस करने की प्रक्रिया में 2-3 दिन लग सकते हैं क्‍योंकि हम कंपनी को ईमेल भेजते हैं फिर उधर से जानकारी मिलने में समय लगता है आदि-आदि। उसने यह भी कहा कि ज़्यादातर लोगों को तो हम लोग धमका देते हैं तो वे फ़ोन करना बंद कर देते हैं लेकिन कुछ बेहद ''कमीने'' और ''रेयर'' किस्‍म के बदमाश होते हैं ये भी उन्‍हीं में से एक लग रहा है।

मैंने राजन भगत से लेकर उस महिला कर्मी को भी बताने की कोशिश की कि जो व्‍यक्ति इस तरह से धमकियां दे रहा है वह किसी भी घृणित किस्‍म की प्रतिशोधी हरकत भी कर सकता है, क्‍या आप लोग तब कार्रवाई करेंगे जब कुछ हो जाएगा? स्‍त्री मुक्ति लीग की ओर से हम लोग रोज़ सड़कों पर निकल रहे हैं, उस व्‍यक्ति ने कहा है कि वह हमें पहचानता है और सीधे धमकियां दे रहा है। मगर वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं, बस आश्‍वासन दिए जा रहे हैं।

हम जानना चाहते हैं कि दामिनी की शहादत के बाद अगर यही दिल्‍ली पुलिस की सक्रियता का आलम है तो कोई भी स्‍त्री दिल्‍ली में अपने को कैसे सुरक्षित महसूस कर सकती है? घ‍ड़ि‍याली आंसू टपकाने वाली सोनिया गांधी से लेकर शीला दीक्षित तक को क्‍या अपनी मशीनरी की इस असलियत के बारे में पता भी है - जहां बर्बर, घिनौनी मानसिकता वाले मर्दरूपी जानवर बेख़ौफ़ घूम रहे हैं और स्त्रियां अपनी शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकतीं।

नोट : इन सारी ''हेल्‍पलाइनों'' पर फोन करने पर पैसे कटते हैं। ये नि:शुल्‍क क्‍यों नहीं हैं? किसी मुसीबतज़दा या ग़रीब स्‍त्री के फ़ोन में पैसे कम हों तो वह भला क्‍या करेगी?


लेखक कविता स्‍त्री मुक्ति संगठन से जुड़ी हुई हैं.

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