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बुधवार, 2 जनवरी 2013

सरपट अज्ञाने का


सरपट अज्ञाने की

समाज परिवर्तन की आस लगाए उत्सुक सा दिख रहा है. परिवर्तन की धारा अनविरत चलती रहती है, शाश्वत सत्य है. जो आज है, कल अवश्य कुछ नए खूबसूरत पल आगाज़ करेगा. समझदारी का तकाजा है कि स्वयं को किस दल की भागीदारी के लिए तैयार किया जाय. जो भी बुरा लगता है, उसका स्वयं में परिमार्जन न हो तो, साफ़ जाहिर है कि उस प्रवृत्ती का संपूर्ण खात्मा आपके द्वारा संभव नहीं है.
याद रखें, आप जो भी आवश्यक व्यवस्था चाह रहे हैं, उसके निर्माण की जिम्मेदारी आपको स्वयं लेनी होगी, अपने स्तर से. अन्य आपके सहयोगी होंगे, न कि आपके लिए सुव्यवस्था स्थापित कर देंगे. आज जो भी महान आत्माएं, आपके सामने आदर्श प्रस्तुत कर आपको उत्साहित कर रही हैं, वे सभी द्वार हैं, जिनसे होकर नयी आत्माएं संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन को साकार करेंगी. फिलहाल की जीवित आत्माओं के पास स्पष्ट समाधान नहीं दिख रहा है, क्योंकि उनकी सोच भी वर्तमान दोषपूर्ण व्यवस्था की ही देन हैं. आप भी उनके सहयोग में द्वार बन जाएँ, उचित होगा; क्योंकि अगर दीवार बने तो अंजाम क्या होगा खुद ही सोचें और बिना पूर्ण परिमार्जन के नयी व्यवस्था के सृजनकर्ता तो हो ही नहीं सकते.
नियम, क़ानून, प्रावधान सब भय उत्पन्न करने के साधन हैं. भय पर आधारित व्यवस्थाएं स्थायी समाधान नहीं हो सकतीं. धनबल, शस्त्रबल या किसी भी तरह के बलप्रभुत्व से प्रभावित व्यवस्था किसी न किसी का उत्पीडन अवश्य करेंगीं. उत्पीडन रहित सामाजिक प्रणाली प्रेम, ज्ञान और त्याग पर आधारित हों तो स्थायी समाधान की उम्मीद बनती है.
यह एक लम्बी जन जागरण की प्रक्रिया है, जिसमें उच्चतम धैर्य और कर्मठता की आहुति ही खूबसूरत बगिया खिलाएगी. उम्मीद है हम आप इसमें खरे उतरेंगें.

1 टिप्पणी:

  1. ठीक कह रहे हो भाई.. बस हम भारतीय हर बार की तरफ इस बार भी अपनी भुल्क्ड पर्वती दिखा कर सब भूल ना जाये..
    हम भारतीयों की यादास्त बड़ी कमजोर होती है..

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