दिल्ली गैंगरेप की पीडि़ता की मौत के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा
है कि अब सरकार क्या करेगी। क्या सरकार आरोपियों को फांसी देगी? या
उन्हें तिहाड़ जेल में बिठा कर चिकन बिरयानी खिलायी जायेगी। खैर
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान से तो यही लग रहा है कि सरकार जल्द ही
इस मामले में ऐक्शन लेगी। खैर ऐक्शन तो होगा, यह सबको पता है, लेकिन
क्या सरकार असली न्याय कर पायेगी। वो सरकार जहां नेता बलात्कारी हों।
यह सवाल वाजिब है, इसलिये क्योंकि दिल्ली गैंग रेप ने देश की अस्मिता को
तार-तार कर दिया है। ऐसे में अब अगर हमारे संसद और विधानसभाओं में
बलात्कारी सांसद विधायक बनकर राज करेंगे, तो सड़कों पर छुट्टा सांड की तरह
घूम रहे अपराधी बुलंद हौंसलों के साथ एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देते
रहेंगे। दिल्ली रेपकेस के दिन यानी 16 दिसंबर के बाद से अभी तक एक भी ऐसा
दिन नहीं गया, जब रेप की खबर नहीं आयी हो। न पुलिस कुछ कर पा रही है, न
सरकार।
बात अगर उठी ही है तो हम यहां उत्तर प्रदेश में कुछ विधायकों के नाम
ले रहे हैं, जिन पर बलात्कार के आरोप लगे हैं। यूपी में समाजवादी पार्टी
से श्री भगवान शर्मा, देबई बुलंदशहर से, अनूप सांदा, सुल्तानपुर से, मनोज
कुमार पारस, नगीना बिजनौर से विधायक हैं। वहीं बसपा के अलीम खान बुलंदशहर
से, भाजपा के जेठाभाई जी अहिर सेहरा, गुजरात से, टीडीपी के कंडीकुंटा
वेंकटा, कदीरी अनंतपुर, आंध्र प्रदेश से विधायक बनकर जनता की सेवा कर रहे
हैं।
क्या कोई पार्टी संकल्प लेगी?
वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि ऐसे लोगों को सांसद-विधायक बनाने की शुरुआत
राजनीतिक पार्टियों से होती है। अब सवाल यह है कि क्या आज कोई पार्टी यह
संकल्प लेगी कि वो भविष्य में कभी भी किसी बलात्कारी को टिकट नहीं देगी?
क्या आज कोई पार्टी यह संकल्प लेगी, कि भविष्य में अगर कोई
सांसद-विधायक या पार्टी नेता बलात्कार के केस में आया, तो उसे तत्काल
निष्कासित कर दिया जायेगा?
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