देश के 11 केन्द्रीय मजदूर संगठन हड़ताल पर हैं। साथ ही आटो, टैक्सी बस और कई राज्यों में सरकारी कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं।
हड़ताली कर्मचारियों की प्रमुख मांगें हैं -
1)महंगाई के लिए जिम्मेदार सरकारी नीतियों में बदलाव
2)महंगाई को देखते हुए न्यूनतम भत्ता बढ़ाया जाए
3)सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी प्राइवेट कंपनियों को न बेची जाए
4)आउटसोर्सिंग के बजाए रेग्युलर कर्मचारियों की भर्तियां हो
ये सब मांगें देश की आम जनता की ज़रूरतें हैं। सरकार हमेशा की तरह इन मुद्दों को और मांगों को टालती रही है। सरकार चाहती तो संगठनों से बात कर हड़ताल को टाल सकती थी लेकिन शुरू से चुप्पी रखने के बाद उसने अंतिम समय में बातचीत का नाटक भर किया है। इसके उलट सरकार अपने बयानों से यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि इस हड़ताल से देश को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान होगा।
हम पूछना चाहते हैं कि यह नुकसान किसे होगा? जहाँ तक जनता के कष्ट का प्रश्न है तो एक भी दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन यह सरकार जनता को कोई न कोई भारी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्ट न दे रही हो? न वह महंगाई कम कर पा रही है न वेतन बढ़वा रही है।
आम आदमी पार्टी इस हड़ताल को एतिहासिक मानती है और इसका समर्थन करती है
हड़ताली कर्मचारियों की प्रमुख मांगें हैं -
1)महंगाई के लिए जिम्मेदार सरकारी नीतियों में बदलाव
2)महंगाई को देखते हुए न्यूनतम भत्ता बढ़ाया जाए
3)सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी प्राइवेट कंपनियों को न बेची जाए
4)आउटसोर्सिंग के बजाए रेग्युलर कर्मचारियों की भर्तियां हो
ये सब मांगें देश की आम जनता की ज़रूरतें हैं। सरकार हमेशा की तरह इन मुद्दों को और मांगों को टालती रही है। सरकार चाहती तो संगठनों से बात कर हड़ताल को टाल सकती थी लेकिन शुरू से चुप्पी रखने के बाद उसने अंतिम समय में बातचीत का नाटक भर किया है। इसके उलट सरकार अपने बयानों से यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि इस हड़ताल से देश को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान होगा।
हम पूछना चाहते हैं कि यह नुकसान किसे होगा? जहाँ तक जनता के कष्ट का प्रश्न है तो एक भी दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन यह सरकार जनता को कोई न कोई भारी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्ट न दे रही हो? न वह महंगाई कम कर पा रही है न वेतन बढ़वा रही है।
आम आदमी पार्टी इस हड़ताल को एतिहासिक मानती है और इसका समर्थन करती है
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