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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

"आम बजट और आम आदमी"

एक आम आदमी" !! 40.74 करोड़ जिसे सुबह शाम पसीना बहाकर 2 जून की रोटी नसीब होती है!! कहने को तो इस देश के प्रधानमंत्री के घर का पंखा तक आम आदमी के टैक्स से चलता है, पर खुद अपने घर के लाइट और पंखे का बिल भरना उसके बूते की बात नही!! जानते हैं क्यों? क्यूंकि सरकार को टाटा, अम्बानी, और तमाम उन लोगों के ऐशो आराम का ख़याल रखना होता है, जो इनके 4 काम के बदले 4 काम करते हैं!! सभी नीतियाँ इस कदर बनायीं जाती हैं, कि एक तथाकथित ख़ास वर्ग को रिझा कर रखा जा सके !!
हमारे देश में बहुत सी पार्टियां हैं, जिनका वोट बैंक उनके निजी हित के हिसाब से तय होता है !! हर कोई तुष्टिकरण की राजनीति में लिप्त है !! एक चुनिन्दा वर्ग को संतुष्ट कर पूरे देश की एकता, सद्भावना, को ताक पर रख दिया जाता है !! इन नीतियों का पूरा फायदा तो, इस एक वर्ग को मिल जाता है, पर इसके जितने नुकसान होते हैं, उसका बोझ पहले से ही मुसीबतों के पहाड़ तले दबे "आम आदमी" के सर आता है!! पेट्रोल, डीज़ल, राशन, गैस, बिजली पानी, सब के दाम सरकार और निजी कंपनियां एक कमरे में बैठ कर तय कर लेती हैं, और फिर फैसला सुना दिया जाता है !!



आखिर क्यों, एक बार भी आम आदमी की राय नही ली जाती? क्यों इस बात का हिसाब नही रखा जाता कि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जिसके घर में पाई पाई के ऊपर नीचे होने से शायद शाम को उजाला न हो, पंखा न चले, पानी न आये, चूल्हे पर बर्तन न चढ़े !!
चुनाव के वक़्त हाथ जोड़कर कमर झुकाकर इन पार्टियों के नेता इसी आम जनता के दरवाजे पर दस्तक देते हैं, पर पीठ घुमाते ही ये वार भी इसी पर करते हैं !! इसी घाव से तड़पते, कराहते 5 साल बीत जाते हैं, और एक घाव के भरने से पहले दूसरा घाव और फिर तीसरा घाव मिलता रहता है !!
आम आदमी त्रस्त है!! हैरान है!! पर मायूस नही, क्यूंकि इतिहास गवाह है की जब भी क्रान्ति आई है, इसी आम जनता के हौसले के दम पर आई है!! अब बारी है एक और राजनीतिक क्रान्ति की!! हम आम आदमी हैं, आम आदमी से ही बात करते हैं, आम आदमी के हित की ही बात करते हैं !! ये हमारा वोट बैंक नही, ये हमारी व्यवस्था परिवर्तन की ज़मीन है!! हम टाटा, अम्बानी, बिडला, के नही, आम आदमी के नुमाइन्दे हैं!! हमारा मकसद, ऐसा आरामदायक गलीचा बनना है, जिस पर से होकर आम आदमी संसद में जा सके !! अपने रास्ते के काँटों से बचने के लिए इस गलीचे पर आइये, और लम्बे डग भरकर संसद की दीवारों पर आम आदमी का इतिहास लिखिए !!

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