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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

अरविन्द जी को समर्पित आम आदमी द्वारा

गाड़ी,बंगला और नोकर चाकर ,
सब कुछ इसके नसीब में था ,
फिर भी ये शक्श दिल्ली की गालिओ में पैदल घूमता है ,
झूठ की राह को छोड़ , ये सच को चूमता है ,

पैसे की चकाचोंद सब को पागल कर देती है ,
ये पागल होश में आ गया ,
छोड़ कर नोकरी ,
ये अब परिवर्तन के नशे में झूमता है ,
झूठ की राह को छोड़ ,ये सच को चूमता है ,

गाड़ी,बंगला और नोकर चाकर ,
सब कुछ इसके नसीब में था ,
फिर भी ये शक्श दिल्ली की गालिओ में पैदल घूमता है ,
झूठ की राह को छोड़ , ये सच को चूमता है ,

पैसे की चकाचोंद सब को पागल कर देती है ,
ये पागल होश में आ गया ,
छोड़ कर नोकरी ,
ये अब परिवर्तन के नशे में झूमता है ,
झूठ की राह को छोड़ ,ये सच को चूमता है ,

मैंने नहीं देखा था ऐसा शक्श ,
जो डरा ना हो सत्ता के ठेकेदारों से ,
इसके सच ने डरा दिया सब को ,
सच में इतनी शमता ,
झूठ की राह को छोड़ , ये सच को चूमता है.

जय हिन्द..!
मैंने नहीं देखा था ऐसा शक्श ,
जो डरा ना हो सत्ता के ठेकेदारों से ,
इसके सच ने डरा दिया सब को ,
सच में इतनी शमता ,
झूठ की राह को छोड़ , ये सच को चूमता है.

जय हिन्द..!

1 टिप्पणी:

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की एक कविता है ...
    लीक लीक गाडी चले , लीक ही चले कपुत
    तीन छाड् मारग चलै , शायर सुर सपुत
    .................................................
    अरविन्द जी से भी हमारी यही अपेक्षा है कि इस सम्पन्न‌ भारत मे वर्षो से चली आ रही असमान विपन्नता को दुर करने के लिये लीक से हट कर अपने जीवन को न्यौछावर करने वाले युवाओ की सेना तैयार करे . बहरहाल शुरवीरो मे कुछ महान कार्य करने का एक धुन होता है और‌ वो गाडी बगला त्यागने वाले पहले व्यक्ति नही है . भारतवर्ष मे परम्परा हि है . नाम गिनने की आवश्यकता नही . लेकिन उनका नाम और त्याग का वर्णन तभी हुआ जब उन महामानवो ने कोई मील का पत्थर तय किया .
    लेकिन अरविन्द जी द्वारा इतने साफ सुथरे मन से लोकहित के लिये उठाये कदमो की सफलता पर इन्ही आम आदमियो को सन्देह क्यो है ?
    कारण भी बहुत साफ है. 47के बाद‌ अब तक जीतने भी देश व्यापी आन्दोलन हुए . बहुसन्ख्यक जनता को उसमे आजतक कुछ खास नही मिला , भारत देश अब भी गरिबि भुखमरी कुपोषण आबादी बम . इन सभी नकारात्मक कारको मे उच्च पायदानो पर विराजमान है .
    इसलिये केजरी वाल जी के आन्दोलन मे ऐसा क्यो लगता है कि इनका भी आन्दोलन पुर्व मे हुए आन्दोलन की तरह ही प्रतिफल के रुप मे ढेर सारी पार्टियो मे एक और पार्टि के रुप मे आया . और कालान्तर मे यही ,' आम आदमि पार्टी ' सेक्युलर होने और साम्प्रदायिक शक्तियो को रोकने के बहाने. मुलायम सिह यादव . लालुयादव आदि कि तरह काग्रेस को ही सपोर्ट करते नजर आये . और ये भारत देश जिसको कभी भी सही प्रतिनिधित्व नही मिला की परम्परा को जारी रखे .

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