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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

स्वतन्त्रता दिवस की पुकार:- अटल बिहारी वाजपाई

पन्द्रह अगस्त का दिन कहता-आज़ादी अभी अधूरी है!
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ ना पूरी है!!

जिनकी लाशो पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई!
वे अब तक है खाना बदोश गम की काली बदली छाई!!

कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी पानी सहते है!
उनसे पूछो पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते है!!



हिन्दू के नाते उनका दुःख सुनते यदि तुम्हे लाज आती!
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जन्हा कुचली जाती!!

इन्सान जन्हा बेचा जाता, इमान खरीदा जाता है!
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है!!

भूखो को गोली नंगो को हथियार पिन्हाये जाते है!
सूखे कंठो से जेहादी नारे लगवाये जाते है!!

लाहौर,कराची,ढाका तक मातम की काली छाया!
पख्तूनो पर, गिलगित पर है गमगीन गुलामी का साया!!

बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है!
केसे उल्लास मनाऊ मैं?थोड़े दिन की मजबूरी!!

दिन दूर नही खंडित भारत को पुन अखंड बनायेंगे!
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएंगे!!

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करे!
जो पाया उसमे खो ना जाये, जो खोया उसका ध्यान करे!!

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