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मंगलवार, 12 मार्च 2013

कविता "आप' के लिए !

Photo: आप कहते हो कि बस ये जोश है ।
जी नहीं, ये बरसों का आक्रोश है ।।

बढ़ रही है हर तरफ बेचैनियाँ ।
और वो दिल्ली में बस मदहोश है ।।

बस पकड़नी थी, सो आँखें मूँद ली ।
वैसे उस घटना से मुझमें रोष है ।।

चीखती है उसकी आखों से व्यथा ।
ये अलग, वो तिश्ना लब खामोश है ।।

सिर्फ ठहराया गया मुजरिम उसे ।
जबकि व्यवस्था का सारा दोष है ।।

अजनबी सा रोज मिलता है मगर ।
वो कभी मेरा भी था, संतोष है ।।
written by Arun Kumar Turaihaआप कहते हो कि बस ये जोश है ।
जी नहीं, ये बरसों का आक्रोश है ।।

बढ़ रही है हर तरफ बेचैनियाँ ।
और वो दिल्ली में बस मदहोश है ।।

बस पकड़नी थी, सो आँखें मूँद ली ।
वैसे उस घटना से मुझमें रोष है ।।

चीखती है उसकी आखों से व्यथा ।
ये अलग, वो तिश्ना लब खामोश है ।।

सिर्फ ठहराया गया मुजरिम उसे ।
जबकि व्यवस्था का सारा दोष है ।।

अजनबी सा रोज मिलता है मगर ।
वो कभी मेरा भी था, संतोष है ।।
written by Arun Kumar Turaiha

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