आप कहते हो कि बस ये जोश है ।
जी नहीं, ये बरसों का आक्रोश है ।।
बढ़ रही है हर तरफ बेचैनियाँ ।
और वो दिल्ली में बस मदहोश है ।।
बस पकड़नी थी, सो आँखें मूँद ली ।
वैसे उस घटना से मुझमें रोष है ।।
चीखती है उसकी आखों से व्यथा ।
ये अलग, वो तिश्ना लब खामोश है ।।
सिर्फ ठहराया गया मुजरिम उसे ।
जबकि व्यवस्था का सारा दोष है ।।
अजनबी सा रोज मिलता है मगर ।
वो कभी मेरा भी था, संतोष है ।।
written by Arun Kumar Turaiha
जी नहीं, ये बरसों का आक्रोश है ।।
बढ़ रही है हर तरफ बेचैनियाँ ।
और वो दिल्ली में बस मदहोश है ।।
बस पकड़नी थी, सो आँखें मूँद ली ।
वैसे उस घटना से मुझमें रोष है ।।
चीखती है उसकी आखों से व्यथा ।
ये अलग, वो तिश्ना लब खामोश है ।।
सिर्फ ठहराया गया मुजरिम उसे ।
जबकि व्यवस्था का सारा दोष है ।।
अजनबी सा रोज मिलता है मगर ।
वो कभी मेरा भी था, संतोष है ।।
written by Arun Kumar Turaiha
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