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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

इंसानियत के प्रति इस भरोसे की लौ को कम न होने देना।:- मनिस सिसोदिया

"जयपुर से दिल्ली लौटती बस में, पिछली सीट पर बैठी दो सखियों में से एक गुडगाँव में उतर गई है।
दूसरी बीकानेर हाउस पर उतरेगी। पहली को लेने उसके पापा आए थे। उतरते हुए वह अपने सहेली के लिए चिन्तित है। बार बार आग्रह किया।"पागल है, रात के 3 बजे! ऑटो लेगी!... अकेली?" मेरे मन में दामिनी कौंधती है .... लेकिन मेरे पीछे बैठी दामिनी इत्मीनान से बैठी है। उसने अपनी सहेली को कह दिया है, " अरे, सब लोग एक से थोड़े ही होते है, कुछ नहीं होगा". ........... या परवरदिगार!
इंसान के दिल में, इंसानियत के प्रति इस भरोसे की लौ को कम न होने देना।"
:Manish Sisodia On FB.

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