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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

आमलोगों की नजर में 'आप'


दैनिक जागरण .....
बुलंदशहर: 'मैं अन्ना हूं' के बजाय 'आम आदमी' स्लोगन छपी टोपी पहनकर 'आम आदमी पार्टी (आप)' की घोषणा करने वाले अरविंद केजरीवाल की नई सियासी पार्टी की साख पर बहस शुरू हो गई है। पार्टी का नाम तो ध्यान आकर्षित करने वाला जरूर है, लोगों में इस बात को लेकर बहस है कि यह पार्टी आमलोगों का कितना वोट जुटा पाएगी और अन्य पार्टियों से यह कैसे जुदा है?
भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद को एक आम आदमी बताने वाले अरविंद केजरीवाल की राजनैतिक पार्टी 'आप' के प्रति कुछ लोगों ने भरोसा दिखाया है। रविवार को जागरण ने इस संबंध में लोगों की राय ली तो अधिकांश मतदाताओं की राय यह रही कि हर पार्टी 'संघर्ष', 'भरोसा', 'नये विकल्प', 'बदलाव' जैसे वादों के साथ उतरती है, धीरे-धीरे असली चरित्र का पता चलता है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी किन लोगों को टिकट देती है? इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। लोगों में साकारात्मक नजरिया तो दिखा रहा है, लेकिन लोगों के जेहन में 'आप' को लेकर कई सवाल हैं। जाति-धर्म और धन-बल की मकड़जाल में उलझी मौजूदा राजनीति के दौर में आप कितना वोट जुटा पाएगी? यह प्रमुख मुद्दा है।
सिकंदराबाद निवासी विशेष सिंह ने बताया कि अन्ना आंदोलन से लोगों में एक उम्मीद जगी थी। गांव-कस्बों में लोग अन्ना का नाम ले रहे थे। हर राजनीति पार्टी ने धोखा किया है। अगर केजरीवाल की पार्टी अच्छा प्रत्याशी लाती है तो उसे वोट देने में कोई गुरेज नहीं है। बुलंदशहर के प्रीत विहार कालोनी निवासी गृहणी पूर्णिमा शर्मा ने बताया कि महंगाई, रसोई गैस, भ्रष्टाचार यह महत्वपूर्ण मुद्दा है। हर पार्टियों के नेता वोट लेकर वायदा भूल जाते हैं। केजरीवाल से उम्मीद है।
कुछ लोगों ने केजरीवाल की आलोचना भी की। गुलावठी के सोरेन गौतम कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल पिछड़े, अति पिछड़े शोषित वर्ग, किसान-मजदूर के विकास की बात नहीं उठाते हैं। अफसर रहे हैं, उन्हें जमीनी समस्याओं की समझ नहीं है। उनकी पार्टी क्या करेगी? यह भी तय नहीं है।
खुर्जा के महिपाल बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल महत्वाकांक्षी हैं। टीवी पर बहस करने के बजाय वह जनता के बीच आएं। समस्याएं देखें, आवाज उठाएं। वहीं कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि चुनाव धर्म-जाति, संगठन की ताकत और धन-बल के बदौलत जीते जाते हैं। केजरीवाल की पार्टी बिना धन खर्च व जाति-मजहब की राजनीति किए कैसे चुनाव जीतेगी?
राजनैतिक पार्टिया हुई हमलावर
बुलंदशहर: अन्ना के मंच से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते अरविंद केजरीवाल तो शुरू में कांग्रेस छोड़ हर सियासी पार्टी को खूब सुहाते थे। उनके अलग राजनैतिक पार्टी बनाने की घोषणा के साथ ही सियासी पार्टी के लोग खिसकने लगे। शनिवार को आम आदमी पार्टी बनाने की औपचारिक घोषणा के बाद से कमोवेश हर हर राजनैतिक पार्टी के लोग उन्हें प्रतिस्पर्धी की नजरों से देखते हुए हमलावर नजर आ रहे हैं। आंदोलन तक तो सब वाहवाही कर रहे थे। उनके राजनीति में उतरने के बाद 'प्रतिस्पर्धी' वाले सुर निकलने लगे हैं।
भाजपा नेता वीरेंद्र राणा का कहना है कि अरविंद केजरीवाल बस ड्रामा कर रहे हैं। नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं। सब को भ्रष्ट बता रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उनको और उनके आसपास खड़े चंद लोगों को छोड़कर सब भ्रष्ट हैं। उन्हें अपने गिरेवान में भी झांकना चाहिए। भारत की जनता समझदार है, उन्हें समझा भी देगी।
सपा नेता ठाकुर सुनील सिंह का कहना है लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति पार्टी बना सकता है। अरविंद केजरीवाल ने भी बना लिया, इसमें कुछ भी नया नहीं है। कह रहे थे भ्रष्टाचार से मुक्त कराएंगे। लोकपाल कानून दिलवाएंगे। अब कहां गया आंदोलन और लोकपाल?
बसपा नेता धर्मेद्र गौतम का कहना है कि अन्ना हजारे भी अरविंद केजरीवाल का साथ खुलकर नहीं आ रहे हैं। अन्ना टीम के कई सदस्यों को ही केजरीवाल के एजेंडे में शक नजर आ रहा है। रालोद नेता राजीव चौधरी कहते हैं कि केजरीवाल के पास किसी पर सवाल उठाना और आरोप लगाना केवल दो हथियार हैं। देश के विकास के लिए कोई दूरदर्शी योजना नहीं है।
कांग्रेस जिलाध्यक्ष नरेंद्र त्यागी कहते हैं कि अरविंद को सांसद बनने की ख्वाहिश जोर मार रही है, इसके अलावा उनकी नई पार्टी में कुछ भी नहीं है।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सामयिक मामलों के विशेषज्ञ एवं अर्थशास्त्री आलोक पुराणिक कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल का यह योगदान जरूर है कि उन्होंने बड़ी हिम्मत से भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है, लेकिन राजनीति में सफल होना अलग बात है। इस देश में जाति-धर्म और स्थानीय मुद्दों के बदौलत चुनाव की राजनीति होती है। वोट बैंक, सोशल इंजीनियरिंग, धन-बाहुबल से चुनाव जीते जाते हैं। पार्टियों की सफलता उसके संगठन पर निर्भर है। केजरीवाल की पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव तक कोई बड़ी कामयाबी हासिल कर लेगी, ऐसा नजर नहीं आ रहा है।

1 टिप्पणी:

  1. Whenever new began people don't understand it fully
    and start liking or disliking new beginning ,therefore we should first try our best to understand purpose of new beginning ,and if purpose of new beginning is good then we should support it

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