पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आई. एस .आई .और भारत में फैले अलगाववादियों और उनके समर्थकों का गुस्सा , अमरीकी जासूसी एजेसी ऍफ़.बी..आई.द्वारा गिरफ्तार कश्मीरी मूल के भारतीय अमेरिकी नागरिक गुलाम नबी फायी की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह फट पड़ा है , वह न तो आश्चर्यजनक है और न ही अकल्पनीय .
६२ वर्षीय फाई , आई. एस.आई के एजेंट के रूप में अमेरिका , भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम करते थे , और इसके लिए वह नियमित रूप से ५० लाख $ से ज्यादा रकम पाता था , ताकि अमेरिकी नेताओं को भारत विरोधी नीतियों पर चलने के लिए राजी किया जा सके .फायी ने श्रीनगर के श्री प्रताप कॉलेज से स्नातक करने के बाद अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम्.ए किया था और फिर मॉस कम्युनिकेशन से पी. एच . ड़ी .करने के लिए पेंन्सिल्वानिया चले गए जहाँ टेम्पले यूनिवर्सिटी से उन्होंने पी.एच .ड़ी हासिल की
.अब आईये फाई की भारत विरोधी गतिविधियों पर नज़र डाले , फाई कश्मीर पर बड़ी बड़ी हस्तियों को बुला कर अमेरिका मे आलीशान होटलों मे अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार कराता था और भारत विरोधी भाषण दिला कर भारत के खिलाफ माहौल बनवाने का काम करता था .
.उसका यह काम पिछले ३२ सालों से जारी था और न जाने कब तक चलता रहता , परन्तू इधर उसने अमेरिकी नीतिओं को प्रभावित करने काम भी शुरू कर दिया था , जिसकी वजह से ऍफ़. बी.आई.ने उसे गिरफ्तार कर लिया
फाई की गिरफ़्तारी के बाद पता चला क़ि उसने सेमिनारों के ज़रिये भारत के खिलाफ माहौल बनाने मे कम से कम एक दर्जन लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकारों और विचारकों को बुलाया और सेमिनारों मे उनसे भाषण दिलवाए और अपने मंतव्यों को पूरा कराया .
अब ज़रा भारत के उन बडे पत्रकारों के नाम जान लीजिये , जो फाई साहब के सेमिनारों मे भाग लेने जाते रहे हैं , कुछ नाम इस प्रकार हैं :: दिलीप पदगांवकर , कुल दीप नय्यर , दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज राजिंदर सच्चर , और सामाजिक कार्यकर्त्ता गौतम नवलखा . जम्मू कश्मीर के एक अख़बार का सन्चालन करने वाले वेद भसीन तो अक्सर ही उनके बुलावे पर जाते थे .एक अन्य पत्रकार हरिंदर बावेजा का नाम भी सेमिनार में जाने वालों मे शामिल हैं
जुलायी २००७ में सातंवी कश्मीर कांफ्रेंस में भाग लेने प्रफुल्ल किदवई भी गए थे , पर वह यह कर कन्नी काट गए कि वह फाई को वक्तिगत रूप से नही जानते .
सब से खास बात यह है कि फाई के सेमिनारों मे भारत विरोधी बातें , कश्मीर मुद्दे पर कही जाती थीं पर अब फाई की गिरफ़्तारी के बाद सभी ये नामी गिरामी लोग अपने अपने तरीके से सफायी दे रहे है .
सवाल यह है क़ि आयोजकों की बिना पूरी तरह जाँच पड़ताल किये ,कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में अपनी राय व्यक्त करने जाना क्या उचित था . क्या इस तरह के सेमिनारों मे भाग ले कर भाग लेने वालों ने जाने अनजाने देश के प्रति गंभीर अपराध नहीं किया .
ज़ाहिर है क़ि सेमिनार के आयोजकों ने आमंत्रित किये गए लोगो के आने जाने , उनके रुकने , खाने - पीने के अलावा अन्य खर्च भी दिए होंगे .
काश भारतीय पत्रकार और विचारक , विदेशी धरती पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों मे जाने के लोभ कर काबू कर सके होते , तो जो नुकसान भारत का हो गया है वह न हुआ होता .
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