Translet

शनिवार, 15 सितंबर 2012

बड़े दामो पर अन्ना की प्रतिक्रिया


सरकार द्वारा डीजल और एलपीजी की कीमतें बढ़ाने और विपक्षी दलों द्वारा विरोध की रस्मअदायगी ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि हमारे देश की पूरी राजनीतिक व्यवस्था जनविरोधी होती जा रही है. अगले कुछ दिनों में देश को मूल्यवृद्धि के विरोध में होता आया वही पुराना राजनीतिक ड्रामा देखने को मिलेगा. पार्टियां प्रदर्शन करेंगी, बंद का आह्वान करेंगी जिसके बाद हो सकता है कि सरकार बढ़ी हुई कीमतों में मामूली कटौती कर दे जिसके साथ राजनीतिक दलों का रस्मी विरोध भी खत्म हो जाएगा. इसकी चिंता किसी को नहीं रह जाएगी कि जनता पर इसका कितना असर हुआ?
इस राजनीतिक ड्रामे ने एक बार फिर यही संकेत देना शुरू किया है कि सभी राजनीतिक दल आपसी साठगांठ से निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने में जुटे हैं जिससे देश की प्राकृतिक संपदा को भारी नुकसान हो रहा है.
देश में महंगाई की दर काफी दिनों से दो अंकों में है. ऐसी स्थिति में डीजल के महंगा हो जाने के कारण ट्रांसपोर्ट और कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होगा. जिसकी वजह से आमजन पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. एलपीजी की कीमतें बढ़ने का सीधा मतलब है कि मध्य वर्ग की रसोई पर दबाव पड़ेगा जो पहले से ही परेशान आमजन के जीवन की परेशानियां बढ़ाने वाला है.
कीमतें बढ़ाने के पीछे सरकार जो तर्क दे रही है वह गले उतरने वाला नहीं है. कैसी विडंबना है कि जिस सरकार ने पिछले तीन साल में टैक्स छूट के रूप में बड़े कॉरपोरेट घरानों को 10 लाख करोड़ रुपए दान कर दिए वही सरकार आम आदमी के लिए डीजल और एलपीजी पर सब्सिडी देने में असमर्थता जाहिर कर देती है.
इतना ही क्यों, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला खदान आवंटन घोटाला, इन सभी घोटालों की वजह से देश के खजाने का अरबों-खरबों रुपया चोरी हो गया. अगर सरकार ने यह चोरी रोक ली होती तो देश के पास इतनी दौलत होती कि डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाने की बजाय घटाए जा सकते थे.
सरकार पैसे की कमी का रोना केवल तब रोती है जब बात जनकल्याण योजनाओं के लिए धन मुहैया कराने की हो. डीजल की कीमत में वृद्धि के पीछे सरकार का सब्सिडी का दुरुपयोग रोकने का मकसद नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि सरकार ने न तो ऐसी किसी नीति की घोषणा की है जिससे यह पता चले कि सरकार निजी वाहनों और ऑटोमोबाइल उद्योग में डीजल की बेतहाशा बढ़ती खपत को रोकना चाहती हो और न ही सरकार डीजल की बढ़ती खपत की वजह से पर्यावरण पर हो रहे गलत प्रभाव को कम करने के लिए गंभीर है.
तेल, पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस, सबकुछ सरकार और बड़े कॉरपोरेट घरानों के बीच की साठगांठ की वजह से निजी हाथों में जा रहे हैं. देश के तेल और गैस भंडारों को जिस तरह से बड़े कॉरपोरेट घरानों को बांटा जा रहा है, उस पर न्यायपालिका भी ऐतराज जता चुकी है. पिछले 20 सालों में एक के बाद एक आई सरकारों ने तेल और गैस संपदा से भरपूर क्षेत्रों को गलत तरीके से निजी क्षेत्रों को सौंपा है. उससे राष्ट्र के खजाने को जो नुकसान हुआ है वह कोयला घोटाले से भी अधिक है.
राजस्थान तेल ब्लॉक को ओएनजीसी से लेकर कैर्न एनर्जी को औने-पोने दाम पर सौंप दिया गया. अनुबंध की समय सीमा खत्म होने के बाद भी कंपनी को उस क्षेत्र को अपने स्वामित्व में रखने की इजाजत दे दी गई.
कैर्न ने स्वीकार किया था कि इस ऑयल फील्ड रिजर्व में पांच लाख करोड़ का तेल था जबकि उस तेल को निकालने की लागत केवल तीन प्रतिशत है. ओएनजीसी को इस तेल क्षेत्र से केवल 30 फीसदी हिस्सा मिला लेकिन उसे रॉयल्टी की पूरी रकम चुकानी पड़ी. अगर यह तेल क्षेत्र ओनजीसी से वापस नहीं ले लिया गया होता तो देश को यह तेल काफी सस्ते में उपलब्ध होता. 
उसी तरह गोदावरी गैस बेसिन में, जो कि देश का सबसे बड़ा बेसिन है, उसे उत्पादन में साझेदारी के एक अजीबोगरीब समझौते के तहत रिलायंस के हवाले कर दिया गया. रिलायंस ने लाभ को कम दिखाने की नीयत से गैस निकालने की लागत को मनमाने तरीके से बढ़ाकर दिखा दिया. चूंकि सरकार ने लाभ में साझीदारी का समझौता किया था और फर्जी तरीके से लागत बढाकर रिलायंस ने लाभ की राशि घटाकर दिखा दी, इस कारण देश को उसका वाजिब हिस्सा नहीं मिल पाया.
हम यह मांग करते हैं कि सरकार ने डीजल औऱ एलपीजी की कीमतों में जो वृद्धि की है, उसे तत्काल वापस ले और इससे जुड़े सभी दस्तावेज औऱ सूचनाएं सार्वजनिक करे ताकि इस पर एक बहस हो सके. तेल और गैस जैसे देश के प्राकृतिक संसाधनों को निजी हाथों में सौंपने की नीति तत्काल बंद की जाए. निजी क्षेत्रों को अब तक जो आवंटन हुए हैं उसकी एक स्वतंत्र जांच कराई जाए.
कहीं इस वृद्धि के जरिए पेट्रोलियम उत्पादों का खुदरा कारोबार करने वाली कुछ निजी कंपनियों के हितों को साधने की कोशिश तो नहीं हो रहीकीमतों में वृद्धि के निर्णय से जुड़े सारे तथ्य और आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं. 
अगर देश की संसद में बैठी विपक्षी पार्टियां सचमुच इस मूल्य वृद्धि का विरोध करती हैं, तो हम उनसे यह अपेक्षा रखते हैं कि वे हमारी इन मांगों का समर्थन करेंगी और जिन प्रदेशों में उनकी सरकार है वहां डीजल और एलपीजी का दाम करके जनता को राहत देने की कोशिश करेंगी.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें