बेईमानों के ‘सरदार’
पिछले नौ साल से देश की कमान संभाल रहे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है। पहली बार एनडीए ने सामूहिक रूप से कोयले की कालिख में प्रधानमंत्री का नाम भी घसीटा है। संसद में भारी हंगामें के बीच भाजपा इस कोशिश में जुट गयी है कि किसी भी तरह इसी मुद्दे पर सरकार गिरवाकर मध्यावधि चुनाव करवा दिए जाएं। उधर कांग्रेस का एक धड़ा इस बात की पैरवी में जुट गया है कि प्रधानमंत्री खुद इस्तीफा दें और राहुल गांधी की ताजपोशी करवा दी जाए। उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके प्रधानमंत्री के लिए यह बेहद असहज स्थिति है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए यह वर्ष बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। जिस तरह उनकी सरकार पर हमले हो रहे हैं उससे वह खासे बेचैन हैं। अपने पिछले कार्यकाल में तो वह अपनी छवि को बेदाग बचाकर ले गए मगर इस बार ऐसा होता दिखाई नही दे रहा। पिछले कार्यकाल में उन्होंने खामोश रहकर यह सिद्घ करने की कोशिश की थी कि वह मजबूर प्रधानमंत्री है। सत्ता की कमान किसी और के हाथों में ही है। उनकी इस अदा के चलते लोग उन पर सीधा हमला नहीं कर रहे थे। यही कारण रहा कि उनके पिछले कार्यकाल में उनके मंत्रियों पर तो हमला हुआ मगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए सभी ने कहा कि वह शरीफ मगर मजबूर प्रधानमंत्री हैं। मगर यूपीए-2 के कार्यकाल में जिस तरह घोटालों की बाढ़ आयी उसने पूरी सरकार को ही शर्मिंदा कर दिया। राष्ट्रमण्डल खेलों का मामला हो या फिर आदर्श हाउसिंग सोसाईटी घोटाला। टूजी का मामला हो या फिर कोयला खदानों में धांधली का। सरकार के मंत्रियों में मानो होड़ लगी थी कि कौन कितना बड़ा घोटाला कर सकता है। सरकार अपने इन मंत्रियों का शुरुआती दौर में बचाव भी करती नजर आयी। मगर सुप्रीप कोर्ट ने सभी के अरमानों पर पानी फेरते हुए टूजी घोटाले की जांच अपनी निगरानी में करवाना शुरू कर दिया। जिससे सरकार के मंत्री समेत कई प्रभावशाली लोगों को जेल की हवा खानी पड़ गयी। इसी दौर में कांग्रेसियों ने अपने बचाव में सरकार को ईमानदार ठहराने की कोशिशों के बीच कहा कि कोई सरकार ऐसी नही होती जो अपने मंत्रियों को ही भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भिजवा दे। मगर तब लोगों ने कहा कि जेल सरकार ने नही भिजवाया। जेल न्यायालय के आदेश पर भेजा गया है। कांग्रेस के मंत्रियों समेत सरकार के प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार के दलदल में फंसने से सरकार की खासी फजीहत हो रही थी और सरकार को कोई जवाब नही सूझ रहा था। इन्हीं सब हंगामें के बीच कोयला घोटाले पर कैग की रिपोर्ट ने बची खुची कसर भी पूरी कर दी। कैग ने अपनी रिर्पाेट में उल्लेख किया कि किस तरह कोयला आवंटन में एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपये का नुकसान देश का हुआ। भाजपा को इससे बेहतर मौका कोई और नही मिल सकता था। लिहाजा संसद में भाजपा ने सीधे प्रधानमंत्री पर हमला बोलने की रणनीति बनायी। भाजपा ने खुद प्रधानमंत्री पर इस घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर डाली। भाजपा नेताओं का कहना था कि चूंकि इस घोटाले के समय कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास ही था लिहाजा नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसी मांग के चलते भाजपा ने संसद की कार्यवाही लगातार ठप रखी। कांग्रेस के नेता पहले तो इस मुद्दे को टालना चाहते थे मगर बाद में उन्होंने कहना शुरू किया कि वे इस मुद्दे पर बहस को तैयार हैं। कांग्रेस जानती थी कि इस मुद्दे पर बहस का मतलब है कि इसमें भाजपा नेताओं की भागीदारी भी सामने आ जायेगी क्योंकि अधिकांश आवंटित खदानें झारखण्ड और कर्नाटक की हैं। खदानों के आवंटन के समय राज्यों के मुख्यमंत्री की इच्छाओं को प्राथमिकता दी जाती है। जाहिर है अगर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ने खदानों की संस्तुति की है तो इसका मतलब है कि वे खुद भ्रष्टाचार में शामिल हंै। भाजपा के एक धड़े ने यह भी कहना शुरू किया कि सभी सांसदों के इस्तीफे दिलवा दिए जाए मगर तभी कांग्रेस की तरफ से सरगर्मी हुई कि चुनाव में अभी एक वर्ष से अधिक का समय बाकी है लिहाजा इस्तीफे की स्थिति में उन सीटों पर उप चुनाव करा दिये जाए इसके बाद यह विचार खत्म कर दिया गया। उधर कांग्रेस में भी एक धड़े ने कहना शुरू किया कि जिस तरह अन्ना से लेकर रामदेव और भाजपा तक मनमोहन सिंह को घेर रहे है इन स्थितियों में उनसे त्यागपत्र दिलवाकर राहुल गांधी की ताजपोशी कर दी जाए। मगर यूपीए अध्यक्ष इस मुद्दे पर पसोपेश में हैं क्योंकि उन्हें अपने कई सहयोगियों पर पूरा भरोसा नही है। इन सब हालातों के चलते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इज्जत दांव पर लग गयी है और उन्हें अपनी ईमानदारी सिद्घ करनी होगी वरना अब सभी लोग मान रहे हैं कि वे बेइमानों के ‘सरदार’ है।
पिछले नौ साल से देश की कमान संभाल रहे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है। पहली बार एनडीए ने सामूहिक रूप से कोयले की कालिख में प्रधानमंत्री का नाम भी घसीटा है। संसद में भारी हंगामें के बीच भाजपा इस कोशिश में जुट गयी है कि किसी भी तरह इसी मुद्दे पर सरकार गिरवाकर मध्यावधि चुनाव करवा दिए जाएं। उधर कांग्रेस का एक धड़ा इस बात की पैरवी में जुट गया है कि प्रधानमंत्री खुद इस्तीफा दें और राहुल गांधी की ताजपोशी करवा दी जाए। उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके प्रधानमंत्री के लिए यह बेहद असहज स्थिति है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए यह वर्ष बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। जिस तरह उनकी सरकार पर हमले हो रहे हैं उससे वह खासे बेचैन हैं। अपने पिछले कार्यकाल में तो वह अपनी छवि को बेदाग बचाकर ले गए मगर इस बार ऐसा होता दिखाई नही दे रहा। पिछले कार्यकाल में उन्होंने खामोश रहकर यह सिद्घ करने की कोशिश की थी कि वह मजबूर प्रधानमंत्री है। सत्ता की कमान किसी और के हाथों में ही है। उनकी इस अदा के चलते लोग उन पर सीधा हमला नहीं कर रहे थे। यही कारण रहा कि उनके पिछले कार्यकाल में उनके मंत्रियों पर तो हमला हुआ मगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए सभी ने कहा कि वह शरीफ मगर मजबूर प्रधानमंत्री हैं। मगर यूपीए-2 के कार्यकाल में जिस तरह घोटालों की बाढ़ आयी उसने पूरी सरकार को ही शर्मिंदा कर दिया। राष्ट्रमण्डल खेलों का मामला हो या फिर आदर्श हाउसिंग सोसाईटी घोटाला। टूजी का मामला हो या फिर कोयला खदानों में धांधली का। सरकार के मंत्रियों में मानो होड़ लगी थी कि कौन कितना बड़ा घोटाला कर सकता है। सरकार अपने इन मंत्रियों का शुरुआती दौर में बचाव भी करती नजर आयी। मगर सुप्रीप कोर्ट ने सभी के अरमानों पर पानी फेरते हुए टूजी घोटाले की जांच अपनी निगरानी में करवाना शुरू कर दिया। जिससे सरकार के मंत्री समेत कई प्रभावशाली लोगों को जेल की हवा खानी पड़ गयी। इसी दौर में कांग्रेसियों ने अपने बचाव में सरकार को ईमानदार ठहराने की कोशिशों के बीच कहा कि कोई सरकार ऐसी नही होती जो अपने मंत्रियों को ही भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भिजवा दे। मगर तब लोगों ने कहा कि जेल सरकार ने नही भिजवाया। जेल न्यायालय के आदेश पर भेजा गया है। कांग्रेस के मंत्रियों समेत सरकार के प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार के दलदल में फंसने से सरकार की खासी फजीहत हो रही थी और सरकार को कोई जवाब नही सूझ रहा था। इन्हीं सब हंगामें के बीच कोयला घोटाले पर कैग की रिपोर्ट ने बची खुची कसर भी पूरी कर दी। कैग ने अपनी रिर्पाेट में उल्लेख किया कि किस तरह कोयला आवंटन में एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपये का नुकसान देश का हुआ। भाजपा को इससे बेहतर मौका कोई और नही मिल सकता था। लिहाजा संसद में भाजपा ने सीधे प्रधानमंत्री पर हमला बोलने की रणनीति बनायी। भाजपा ने खुद प्रधानमंत्री पर इस घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर डाली। भाजपा नेताओं का कहना था कि चूंकि इस घोटाले के समय कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास ही था लिहाजा नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसी मांग के चलते भाजपा ने संसद की कार्यवाही लगातार ठप रखी। कांग्रेस के नेता पहले तो इस मुद्दे को टालना चाहते थे मगर बाद में उन्होंने कहना शुरू किया कि वे इस मुद्दे पर बहस को तैयार हैं। कांग्रेस जानती थी कि इस मुद्दे पर बहस का मतलब है कि इसमें भाजपा नेताओं की भागीदारी भी सामने आ जायेगी क्योंकि अधिकांश आवंटित खदानें झारखण्ड और कर्नाटक की हैं। खदानों के आवंटन के समय राज्यों के मुख्यमंत्री की इच्छाओं को प्राथमिकता दी जाती है। जाहिर है अगर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ने खदानों की संस्तुति की है तो इसका मतलब है कि वे खुद भ्रष्टाचार में शामिल हंै। भाजपा के एक धड़े ने यह भी कहना शुरू किया कि सभी सांसदों के इस्तीफे दिलवा दिए जाए मगर तभी कांग्रेस की तरफ से सरगर्मी हुई कि चुनाव में अभी एक वर्ष से अधिक का समय बाकी है लिहाजा इस्तीफे की स्थिति में उन सीटों पर उप चुनाव करा दिये जाए इसके बाद यह विचार खत्म कर दिया गया। उधर कांग्रेस में भी एक धड़े ने कहना शुरू किया कि जिस तरह अन्ना से लेकर रामदेव और भाजपा तक मनमोहन सिंह को घेर रहे है इन स्थितियों में उनसे त्यागपत्र दिलवाकर राहुल गांधी की ताजपोशी कर दी जाए। मगर यूपीए अध्यक्ष इस मुद्दे पर पसोपेश में हैं क्योंकि उन्हें अपने कई सहयोगियों पर पूरा भरोसा नही है। इन सब हालातों के चलते प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इज्जत दांव पर लग गयी है और उन्हें अपनी ईमानदारी सिद्घ करनी होगी वरना अब सभी लोग मान रहे हैं कि वे बेइमानों के ‘सरदार’ है।
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