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बुधवार, 19 सितंबर 2012

केजरीवाल का पतन.(एक आलोचना)

आज जो निर्णय हुआ शायद इस आन्दोलन के लिए उचित नहीं था .... पर शायद यही निर्णय इस आन्दोलन की धार को दोगुना भी कर सकता है ...... क्योंकि इस आन्दोलन के साथ समर्पित भाव से जुड़े लोगो के लिए किसी भी व्यक्तित्व से ऊपर देश हित और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना ज्यादा अहमियत रखता है ..... अच्छा होता की सब मिलकर इसे एक स्वरुप में आगे बढ़ाते .... पर यदि साथियों को ये लगता है की जनता के सामने विकल्प प्रस्तुत करना भी जरूरी है तो उस पर गंभीर विमर्श के बाद ही निर्णय किया गया होगा ऐसा हम मानते हैं ..... जो साथी जिस निर्णय के नजदीक अपने को मानते हैं उसके साथ रहें और ईमानदारी से उस निर्णय को सही साबित करने में जुट जाएँ ........बस एक निवेदन है की अपने ही साथिओं की छीछालेदार करने में अपना कीमती समय और उर्जा न लगायें ..... कुछ सकारात्मक करें .................... आशा है हम सब मिलकर अलग रास्तों से प्रयास करके
 ...एक ही मंजिल पर फिर मिलेंगे ...और तब अपनी बातों के लिए एक दुसरे से शर्मिंदा नहीं होंगे .....................
ज़िन्दगी के दौर में रोज़ ही होता है अब ....
झूठा कपटी चैन की नींद में सोता है अब .......

दुश्मनों की बात अब भला मैं क्यूँकर करूँ ..........
दोस्त ही नित राह में कांटे बोता है अब ..............

अपनी खातिर जो जिया बस उसने ही जीवन जिया ...
जो लड़ा सबके लिए अपना सूकून खोता है अब ..........

ऐ दोस्तों अब हाल मैं ..आगे क्या तुमसे कहूँ ........
छोड़कर अच्छाई को बाकी सब होता है अब ..............छोड़कर अच्छाई को बाकी सब होता है अब ..............
(शरद नारायण खरे जी की सार्थक पंक्तियाँ )

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