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शनिवार, 9 मार्च 2013

जागो...हम सबसे बड़ी जंग हार रहे है


छोडिये ये मोदी वोदी , राहुल वाहुल, ये पाकिस्तान वाकिस्तान, ये हिंदू विन्दु, दंगे वंगे, महिला वहिला, .......फेंक दीजिए इन फ़ालतू मुद्दों को पड़ोस के कूड़े घर में.

कुछ बड़ा बनिए ज़रा बड़ा सोचिये. अगर दिल सिर्फ दिल्लगी में धड़कता है तो छोडिये और गर देश के लिए धडकता है तो आगे पढिये.
 

शायद 20 साल बाद देश के नौजवान हमें माफ नहीं करेंगे क्यूंकि हम मुल्क की सबसे बड़ी जंग हार रहे हैं. जी हाँ बड़ी तेज़ी से अपने हम अपने असली प्रतिद्वंदी चीन से पिछड़ रहें है और अगर 2016 तक हम नही जागे तो इस सदी की सबसे बड़ी रेस हार जायेंगे. 2006 में वर्ल्ड बैंक के आंकड़े गवाह है कि भारत और चीन में आगे बढने के लिए बराबर की टक्कर थी. पश्चिमी अर्थशास्त्री अनुमान लगा रहे थे की 2020 में भारत अपनी दक्ष IT पावर के बूते चीन को पछाडकर दुनिया में सबसे आगे निकल जायेगा. पर ये क्या हुआ ... 6-7 साल में भारत की औद्योगिक ताकत चीन के मुकाबले आधी हो गयी .
अमेरिका के नामी अर्थशास्त्री स्टीवन रैटनर के मुताबिक 2012 में भारत की जीडीपी $ 3,851 तक घटी जो चीन की जीडीपी $ 9,146 की तुलना में एक तिहाई है. भारत में बेरोजगारी बढकर तकरीबन 10 परसेंट हो गयी और चीन में बेरोजगारी घटकर सिर्फ 4 परसेंट रह गयी. चीन इस बीच दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया और भारत इस आंकड़े में कहीं गिनती ही नही है.

अर्थशास्त्री मानते है की भारत का इस रेस में हारना देश की तकदीर और तस्वीर दोनों ही चौपट कर देगा. अगर यही हाल रहा तो बेरोजगारी 20 परसेंट पहुँच सकती है. गरीबी 45 परसेंट से बढकर 55-60 परसेंट हो सकती है. महंगाई 7.5 परसेंट से बढकर दुगनी यानी 15 परसेंट हो सकती है. संसाधनों के नाम पर सार्वजनिक योजनाएं भ्रष्टाचार को और बढावा दे सकती हैं और तब मुट्ठी भर उद्योगपति रिश्वत के बल पर सरकार को ही निगलने लग जायेंगे. आशंका जताई गयी है की चरमराते ढाँचे में देश बिखर सकता है.
स्टीवन रैटनर ने बड़ी चौंकाने वाली बात लिखी है न्यूयार्क टाईम्स में. “ मुझे लगता था विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र इस दौड को जीतेगा लेकिन मेरा अनुमान गलत निकला. भारत ये रेस एक तरह से हार चुका है, “ रैटनर हताशा में लिखते है और उन्होंने गुस्सा सरकार और चंद उद्योगपतियों पर निकाला, “ मुंबई आकर में हैरान हूँ. जहां एक तरफ शहर में बेतहाशा गरीबी है वहीँ मुकेश अंबानी का 27 मंजिला दुनिया का सबसे कीमती घर देख रहा हूँ. ऐसा लगता है सरकार यहाँ चीन को पछाड़ने के लिए नही बल्कि कुछ उद्योगपतियों के पीछे दौड रही है. मुझे अब समझ में आरहा है की कैसे चंद सालों में चीन ने तिबत के पहाड़ों तक सुपर हाईवे बना दिया और मुंबई में चलने लायक ढंग की सड़क नही है. मेरे सामने बाम्बे वी टी का पुराना स्टेशन और खस्ताहाल ट्रेने है जबकि कुछ दिन पहले ही मै 426 km प्रति घंटे की रफ़्तार वाली ट्रेन पर शंघाई में सफर करके आया हूँ.”

मित्रों अगर मै स्टीवेन की दलीलों के समर्थन में एकाध और आंकड़े चीन और भारत की तुलना में आपके सामने रख दूँ तो कई मित्र डिप्रेशन के शिकार हो जायेंगे. विडंबना बस ये है की देश चलाने वाले ये सच जानकर भी डिप्रेस नही होते.

बहरहाल जब चीन से सबक नेहरूजी न ले सके तो मनमोहन साहब क्या लेंगे. जाने दीजिए एक शेर अर्ज है ..... अंबानी हो या राय बहादुर या कोई शुक्ला या पटेल .....शेर पर प्लीज़ गौर करें.

यहाँ सवाल बिकते हैं ...यहाँ जवाब बिकते है
खादी में लिपटे हुए आली जनाब बिकते हैं
यहाँ अरमान बिकते है ...यहाँ फरमान बिकते है
तुम दाम बदल कर तो देखो.. मंत्रियों के ईमान बिकते है......दीपक शर्मा ,आज तक

1 टिप्पणी:

  1. दीपक शर्मा ने बिलकुल ठीक लिखा है..
    हम बेकार की लड़ाइयो में उलझ कर असली लड़ाई भूल रहे है..

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