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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

"सोशल मीडिया":- आम आदमी पार्टी

जब से व्यवस्था परिवर्तन के लिए सामाजिक राजनैतिक आन्दोलन शुरू हुआ, एक बात जो सबसे बड़ी चर्चा का विषय रही, वो है,- "सोशल मीडिया".. सब कहते ये आन्दोलन ज़मीनी नही, क्यूंकि ये तो फेसबुक और ट्विटर से चलता है.. जबकि आन्दोलन में जितनी भूमिका ज़मीनी कार्य की रही, उतनी ही सोशल मीडिया की भी रही.... अगस्त क्रान्ति के समय इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया ने आन्दोलन को दिन रात घर घर तक पहुँचाया.. ऐसा कवरेज शायद ही कभी हुआ हो, लेकिन इसके तुरंत बाद सरकार ने अपनी पकड़ चैनलों पर कड़ी कर दी.. पत्रकारों के सुर बदलने लगे.. आम जनता की साथी रही भारतीय मीडिया अचानक सरकार की वकील बन गयी.. जो मामला भी खुद रखती, दलील भी देती और फैसला भी सुना देती.. उस वक़्त सबसे बड़ा सहारा बनकर सोशल मीडिया ने ही ख़बरों का मैदान संभाला.. तमाम बड़े बड़े सितारों ने अपने समर्थन को इन्ही के ज़रिये आन्दोलन तक पहुँचाया.. देश देश से कोने कोने तक हर पल आन्दोलन के साथी एक दूसरे की असमंजस की स्थिति को सुलझाने में लगे रहे.. आज अगर हम लोगों को राजनीतिक आन्दोलन के विषय में समझाना चाहे, तो शायद एक दिन में मुश्किल से 10 लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाए, वहीँ फेसबुक, ट्विटर पर एक पोस्ट हज़ार लोगों तक जाती है, वो भी चंद मिनटों में... ऐसा कहकर हम उन लोगों के योगदान को कम नही आंक रहे, जो व्यक्तिगत रूप से लोगों तक पहुँच रहे हैं... पर इस आन्दोलन का मकसद बहुत बड़ा है.. और वक़्त उतना ही कम... मकसद है जड़ तक जा चुके भ्रष्टाचार को ख़त्म करना.. हर मोर्चे पर लड़ना होगा.. सिर्फ ये सोचकर की आप सोशल मीडिया तक सीमित हैं, खुद को कम न आंकें. जो पत्रकार, समाचार रीडर अपने आलाकमान के दवाब में अपनी आत्मा को मारकर जनता के साथ खड़े नही हो पाते, वो इसी ट्विटर पर आप और हम जैसे आम आदमी के हक कि बात करते हैं.. इस बात को झुठलाया नही जा सकता कि युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेसबुक, ट्विटर से जुड़ा है.. आप उस युवा को अपनी बात सुना रहे हैं, वो एक युवा आपकी बात को घर के बाकी दस सदस्यों तक पहुंचाएगा.. कारवा बढ़ता जायेगा.. अगर सोशल मीडिया इतना ही बेकार साधन होता, तो सरकारी ज़मात पहले इसका गला घोंटने पर आमादा नही होती और बाद 100 में करोड़ खर्च करके इस पर अपना परचम लहराने की न सोचती! हमारे पास 100 रुपए करोड़ नही, पर 120 करोड़ आम आदमी हैं! क्या 100 करोड़ रुपए के आगे 120 करोड़ आम आदमी इस क्रान्ति को नही जीत सकते!

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