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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

पीड़िता को सिंगापुर ले जाने का फैसला राजनेताओं ने किया, इलाज कर रहे डाक्टरों ने नहीं

Om Thanvi : कल 'द हिन्दू' में पहली बड़ी खबर (लीड) थी कि पीड़िता को सिंगापुर ले जाने का फैसला राजनेताओं ने किया, इलाज कर रहे डाक्टरों ने नहीं। आज, स्वाभाविक तौर पर, खबर का खंडन कर दिया गया है। बड़े डाक्टरों ने सरकार के इस फैसले पर हैरानी प्रकट की थी। बहरहाल, सवाल बना रहेगा कि होश में आ चुकी युवती, परिवार, पुलिस, मजिस्ट्रेट आदि से बात कर रही युवती, वेंटिलेटर के सहारे चिकित्सारत युवती को उठाकर तीस हजार फीट ऊँचे मार्ग से सिंगापुर पहुंचाने के फैसले -- चाहे वह किसी का भी हो -- की टाइमिंग क्या समुचित थी? या महज यश पाने की एक जुगत, कि देखिए हमने तो उसका इलाज विदेश तक में कराने की कोशिशें कीं।

कल ही खबर छपी थी कि तीस हजार फीट पर युवती की हालत एम्बुलेंस-विमान में बिगड़ गयी थी। शीला दीक्षित उसे कितने दिन पहले विदेश ले जाने की बात कह आई थीं। (अगर) ले जाना ही था तो तभी ले जाते। लेकिन क्या देश के भीतर श्रेष्ठ चिकित्सा के प्रयास हमने सचमुच कर लिए थे? सफदरजंग अस्पताल में बहुत काबिल डाक्टर हैं। पर देश का सबसे बड़ा, अपने विशेषज्ञों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर अस्पताल 'एम्स' है, सफदरजंग से हाथ भर की दूरी पर, सड़क के ठीक उस पार। हम तो पीड़िता (अब मृतका) को वहां तक नहीं पहुंचा सके। ऐसे में कोई क्यों न शुबहा करे कि सारे देश को हिला देने वाले इस दर्दनाक, शर्मनाक, नाजुक और भावुक मामले में भी नेता विदेश में इलाज के नाम पर राजनीति कर गए!

जनसत्ता अखबार के संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.

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