लेखक:-निरंजन परिहार.........
मुंबई। खेत रोए, खलिहान रोए। पेड़ रोए, पखेरू रोए। हर आंख में आंसू और हर दिल में दर्द का दावानल। पूरा देश आहत। हर मन मर्माहत। सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी सोई नहीं। तो, मजबूर होकर मनमोहन सिंह भी एयरपोर्ट भागे। एक विशेष विमान में सिंगापुर से उस युवती की लाश शनिवार की रात यानी रविवार को तड़के भारत आई। तो, उसको लेने दोनों दिल्ली के हवाई अड्डे पर हाजिर थे। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। पहली बार हुआ। जब उसे इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था, तो वह जिंदा थी। पर, लौटी तो लाश। सदा के लिए सो गई, पर पूरे देश को जगा गई। सारा देश दुखी। जया बच्चन जार जार रोईं। तारा भंडारी तार तार दिखीं। शबाना आजमी सुबक कर रोईं। गिरिजा व्यास गमगीन। और स्मृति इरानी सन्न हैं।
सिंगापुर से शनिवार की पहली किरण के साथ युवती की मौत की खबर भी आई। फिर शनिवार की देर रात उसका शव लेकर विमान भारत में उतरा। और रात को ही कड़ी सुरक्षा में अंतिम संस्कार भी करवा दिया गया। पूरा देश दो दिन से नहीं, बीते कई दिनों से सिर्फ और सिर्फ उसी युवती की बात कर रहा है। लंदन से लेकर लालकिले और लाल चौक से लेकर लालबाग तक लोग बहुत गुस्से दिखे। गुस्सा लोगों का दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भी जमकर उतरा। जो देश फिल्मी गीतों में शीला की जवानी वाले गीत सुनकर खुश होता रहा है, वह जंतर मंतर से भागती वयोवृद्ध शीला दीक्षित की दुर्दशा देखकर मजे ले रहा था। मजे इसलिए, क्योंकि वे वहां राजनीति करने आई थीं। हमारे देश में हैवानियत भरा जो हादसा हुआ, वह बहुत दुखद है। लेकिन दुख प्रकट करने जो लोग दिल्ली और देश भर में जहां जहां जमा हुए, उनके प्रति राज करनेवालों का रवैया देखकर तो देश दुखी तो है ही शर्मसार भी है।
हमारे हिंदुस्तान की एक युवती के साथ दिल्ली में दरिंदगी को जो खेल हुआ, उससे सारा देश दुखी हुआ। हमारे माननीय प्रधानमंत्री भी दुखी हुए थे। बहुत दबाव और मजबूरी में मनमोहन सिंह उस दिन जब देश के सामने टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश लेकर आए थे, तो कह रहे थे कि तीन बेटियों का पिता हूं, सो हादसे के दर्द को समझता हूं। तो फिर, श्रीमती तारा भंडारी का प्रधानमंत्री से ज्यादा दुखी होना वाजिब है। वे महिला हैं, ऊपर से बहुत सारी बेटियों की मां भी है। चार तो बाकायदा, उनकी कोख से जन्मी हैं। पर, बहुत सारी बेटियां तारा भंडारी के और भी हैं, जिनमें से कुछ उनके पास पलीं तो कई उनकी ममता की छांव में बड़ी हुईं। श्रीमती भंडारी इस हादसे से बहुत हिल गई हैं। राजस्थान विधानसभा की उपाध्यक्ष और राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष रही तारा भंडारी मुंबई में मिली थीं। वे दुख के दरिया में इतनी डूबी हुई थी कि मौत की खबर सुनकर शनिवार को खाना तक नहीं खा पाईं। उनकी दो बेटियों सीमा और कल्पना ने कहा, अपनों ने भी कहा, थोड़ा सा तो खा लीजिए। पर श्रीमती भंडारी बोली, आज क्यों खाना... रोज खाते ही हैं ना। दुख शायद भूख को भी भीतर बहुत गहरे तक मार डालता है। यही वजह रही कि सिंगापुर में भारत की उस बेटी की मोत की खबर पाकर हमारे भारत की बहुत सारी महिलाओं ने भी उस शनिवार को भोजन भी नहीं किया। रविवार भी कईयों का यूं ही गुजरा।
दिल्ली की बस में उस बाला के साथ हुए बेरहम बलात्कार, फिर उसकी मौत ने देश की बहुत सारी महिलाओं की तरह ही तारा भंडारी की सारी खुशियों को भी काफूर कर दिया। समृति इरानी और तारा भंडारी गुजरात के चुनाव में विधानसभा सीटों की प्रभारी थीं। पूरे दो महीने तक बहुत सारी मेहनत से काम करके दोनों अपनी अपनी सीटों पर अपनी पार्टी को जिताकर बहुत खुश थीं। पर, फिलहाल दोनों मुंबई प्रवास पर हैं और दोनों दुखी हैं। स्मृति से बात हुई और तारा भंडारी मिली थी। श्रीमती भंडारी कह रही थी कि आखिर कोई इंसान इस हद तक जब दरिंदगी पर उतर जाए, तो उसको हमारे संस्कारों, समाज और हमारी व्यवस्था सबकी बराबर की जिम्मेदारी कहा जा सकता है। लेकिन सरकारों की जिम्मेदारी ज्यादा है। ऐसे हालात में समाज को जिन पर विश्वास होता है, उनकी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। कह रही थी कि अब हमें ज्यादा जिम्मेदार होना होगा। हमारी बेटियों को ज्यादा मजबूत होना होगा। क्योंकि सिर्फ कानून से ये चीजें नहीं रुकेंगी। राजनीति में आने से पहले से श्रीमती भंडारी महिला अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने के मामले में एक हद तक कुछ कुछ कुख्यात किस्म तक बहुत विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता रही हैं। उनके जमाने में उनके इलाके सिरोही में लोग उनसे डरते ही इस बात को लेकर थे कि कोई महिला किसी दिन कोई शिकायत लेकर कहीं श्रीमती भंडारी के पास न पहुंच जाए। पहुंच गई, तो खैर नहीं। ऐसी मजबूत महिला होने के बावजूद श्रीमती भंडारी भीतर तक हिल गई है, तो हादसे की हकीकत और उसके दर्द की दास्तान में डूबी आम महिलाओं की भावनाओं और दुख को समझा जा सकता है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के एक महिला होने के बावजूद उनकी दिल्ली में महिलाओं के मामले में पुलिस से आम लोगों में संवेदनशून्यता के बढ़ने के लिए वे सरकार को जिम्मेदार बताती है। श्रीमती भंडारी दिल्ली से ज्यादा देश की सरकार को जिम्मेदार मानती हैं, क्योंकि देश भर में महिलाओं के प्रति अत्याचार और जुल्म के साथ साथ बलात्कार के हादसे बढ़ रहे हैं। श्रीमती भंडारी बीजेपी की नेता हैं, इसलिए सरकार के विरोध में बोल रही हैं, ऐसा नहीं है। बल्कि इसलिए, क्योंकि दर्द को भुगत रही किसी महिला के मन की मुसीबत को किसी भी मनमोहन सिंह के मुकाबले वे ज्यादा शिद्धत से समझती हैं। बर्बर बलात्कार की शिकार वह बेबस बाला की मौत पर हर प्रदेश के हर घर में हर आंख से आंसू टपके। हर शहर में हजारों ने हाथों ने जब मोमबत्ती जलाकर उसको श्रद्धांजली दी, तो उन हजारों – लाखों मोमबत्तियों की रोशनी में उस बेबस बाला की आत्मा को जिंदा देखा। जया बच्चन इसीलिए रो रही थीं। जब जिंदा थी, तो वह किसी किसी की ही कुछ लगती थी, पर जहां से जाने से कुछ दिन पहले और जाने के बाद देश के हर दिल से दर्द का रिश्ता कायम कर गई। अब हर किसी को लगता है जैसे वह हमारी अपनी ही थी। हर एक से उस युवती रिश्ता इतना गहरा बंध गया कि जिसने भी हालात को जाना, वह दर्द के दरिया में गोते लगाने लगा। बलात्कार के खिलाफ बहुत सख्त कानून बनाने के लिए आखिर और ऐसे कितने हादसों का इंतजार करना पड़ेगा, जया बच्चन, शबाना आजमी, तारा भंडारी, स्मृति ईरानी और ऐसी ही लाखों महिलाओं को सिर्फ इस एक मासूम से सवाल का जवाब सरकार से चाहिए।
[B]लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं[/B]
मुंबई। खेत रोए, खलिहान रोए। पेड़ रोए, पखेरू रोए। हर आंख में आंसू और हर दिल में दर्द का दावानल। पूरा देश आहत। हर मन मर्माहत। सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी सोई नहीं। तो, मजबूर होकर मनमोहन सिंह भी एयरपोर्ट भागे। एक विशेष विमान में सिंगापुर से उस युवती की लाश शनिवार की रात यानी रविवार को तड़के भारत आई। तो, उसको लेने दोनों दिल्ली के हवाई अड्डे पर हाजिर थे। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। पहली बार हुआ। जब उसे इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था, तो वह जिंदा थी। पर, लौटी तो लाश। सदा के लिए सो गई, पर पूरे देश को जगा गई। सारा देश दुखी। जया बच्चन जार जार रोईं। तारा भंडारी तार तार दिखीं। शबाना आजमी सुबक कर रोईं। गिरिजा व्यास गमगीन। और स्मृति इरानी सन्न हैं।
सिंगापुर से शनिवार की पहली किरण के साथ युवती की मौत की खबर भी आई। फिर शनिवार की देर रात उसका शव लेकर विमान भारत में उतरा। और रात को ही कड़ी सुरक्षा में अंतिम संस्कार भी करवा दिया गया। पूरा देश दो दिन से नहीं, बीते कई दिनों से सिर्फ और सिर्फ उसी युवती की बात कर रहा है। लंदन से लेकर लालकिले और लाल चौक से लेकर लालबाग तक लोग बहुत गुस्से दिखे। गुस्सा लोगों का दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भी जमकर उतरा। जो देश फिल्मी गीतों में शीला की जवानी वाले गीत सुनकर खुश होता रहा है, वह जंतर मंतर से भागती वयोवृद्ध शीला दीक्षित की दुर्दशा देखकर मजे ले रहा था। मजे इसलिए, क्योंकि वे वहां राजनीति करने आई थीं। हमारे देश में हैवानियत भरा जो हादसा हुआ, वह बहुत दुखद है। लेकिन दुख प्रकट करने जो लोग दिल्ली और देश भर में जहां जहां जमा हुए, उनके प्रति राज करनेवालों का रवैया देखकर तो देश दुखी तो है ही शर्मसार भी है।
हमारे हिंदुस्तान की एक युवती के साथ दिल्ली में दरिंदगी को जो खेल हुआ, उससे सारा देश दुखी हुआ। हमारे माननीय प्रधानमंत्री भी दुखी हुए थे। बहुत दबाव और मजबूरी में मनमोहन सिंह उस दिन जब देश के सामने टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश लेकर आए थे, तो कह रहे थे कि तीन बेटियों का पिता हूं, सो हादसे के दर्द को समझता हूं। तो फिर, श्रीमती तारा भंडारी का प्रधानमंत्री से ज्यादा दुखी होना वाजिब है। वे महिला हैं, ऊपर से बहुत सारी बेटियों की मां भी है। चार तो बाकायदा, उनकी कोख से जन्मी हैं। पर, बहुत सारी बेटियां तारा भंडारी के और भी हैं, जिनमें से कुछ उनके पास पलीं तो कई उनकी ममता की छांव में बड़ी हुईं। श्रीमती भंडारी इस हादसे से बहुत हिल गई हैं। राजस्थान विधानसभा की उपाध्यक्ष और राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष रही तारा भंडारी मुंबई में मिली थीं। वे दुख के दरिया में इतनी डूबी हुई थी कि मौत की खबर सुनकर शनिवार को खाना तक नहीं खा पाईं। उनकी दो बेटियों सीमा और कल्पना ने कहा, अपनों ने भी कहा, थोड़ा सा तो खा लीजिए। पर श्रीमती भंडारी बोली, आज क्यों खाना... रोज खाते ही हैं ना। दुख शायद भूख को भी भीतर बहुत गहरे तक मार डालता है। यही वजह रही कि सिंगापुर में भारत की उस बेटी की मोत की खबर पाकर हमारे भारत की बहुत सारी महिलाओं ने भी उस शनिवार को भोजन भी नहीं किया। रविवार भी कईयों का यूं ही गुजरा।
दिल्ली की बस में उस बाला के साथ हुए बेरहम बलात्कार, फिर उसकी मौत ने देश की बहुत सारी महिलाओं की तरह ही तारा भंडारी की सारी खुशियों को भी काफूर कर दिया। समृति इरानी और तारा भंडारी गुजरात के चुनाव में विधानसभा सीटों की प्रभारी थीं। पूरे दो महीने तक बहुत सारी मेहनत से काम करके दोनों अपनी अपनी सीटों पर अपनी पार्टी को जिताकर बहुत खुश थीं। पर, फिलहाल दोनों मुंबई प्रवास पर हैं और दोनों दुखी हैं। स्मृति से बात हुई और तारा भंडारी मिली थी। श्रीमती भंडारी कह रही थी कि आखिर कोई इंसान इस हद तक जब दरिंदगी पर उतर जाए, तो उसको हमारे संस्कारों, समाज और हमारी व्यवस्था सबकी बराबर की जिम्मेदारी कहा जा सकता है। लेकिन सरकारों की जिम्मेदारी ज्यादा है। ऐसे हालात में समाज को जिन पर विश्वास होता है, उनकी जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। कह रही थी कि अब हमें ज्यादा जिम्मेदार होना होगा। हमारी बेटियों को ज्यादा मजबूत होना होगा। क्योंकि सिर्फ कानून से ये चीजें नहीं रुकेंगी। राजनीति में आने से पहले से श्रीमती भंडारी महिला अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने के मामले में एक हद तक कुछ कुछ कुख्यात किस्म तक बहुत विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता रही हैं। उनके जमाने में उनके इलाके सिरोही में लोग उनसे डरते ही इस बात को लेकर थे कि कोई महिला किसी दिन कोई शिकायत लेकर कहीं श्रीमती भंडारी के पास न पहुंच जाए। पहुंच गई, तो खैर नहीं। ऐसी मजबूत महिला होने के बावजूद श्रीमती भंडारी भीतर तक हिल गई है, तो हादसे की हकीकत और उसके दर्द की दास्तान में डूबी आम महिलाओं की भावनाओं और दुख को समझा जा सकता है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के एक महिला होने के बावजूद उनकी दिल्ली में महिलाओं के मामले में पुलिस से आम लोगों में संवेदनशून्यता के बढ़ने के लिए वे सरकार को जिम्मेदार बताती है। श्रीमती भंडारी दिल्ली से ज्यादा देश की सरकार को जिम्मेदार मानती हैं, क्योंकि देश भर में महिलाओं के प्रति अत्याचार और जुल्म के साथ साथ बलात्कार के हादसे बढ़ रहे हैं। श्रीमती भंडारी बीजेपी की नेता हैं, इसलिए सरकार के विरोध में बोल रही हैं, ऐसा नहीं है। बल्कि इसलिए, क्योंकि दर्द को भुगत रही किसी महिला के मन की मुसीबत को किसी भी मनमोहन सिंह के मुकाबले वे ज्यादा शिद्धत से समझती हैं। बर्बर बलात्कार की शिकार वह बेबस बाला की मौत पर हर प्रदेश के हर घर में हर आंख से आंसू टपके। हर शहर में हजारों ने हाथों ने जब मोमबत्ती जलाकर उसको श्रद्धांजली दी, तो उन हजारों – लाखों मोमबत्तियों की रोशनी में उस बेबस बाला की आत्मा को जिंदा देखा। जया बच्चन इसीलिए रो रही थीं। जब जिंदा थी, तो वह किसी किसी की ही कुछ लगती थी, पर जहां से जाने से कुछ दिन पहले और जाने के बाद देश के हर दिल से दर्द का रिश्ता कायम कर गई। अब हर किसी को लगता है जैसे वह हमारी अपनी ही थी। हर एक से उस युवती रिश्ता इतना गहरा बंध गया कि जिसने भी हालात को जाना, वह दर्द के दरिया में गोते लगाने लगा। बलात्कार के खिलाफ बहुत सख्त कानून बनाने के लिए आखिर और ऐसे कितने हादसों का इंतजार करना पड़ेगा, जया बच्चन, शबाना आजमी, तारा भंडारी, स्मृति ईरानी और ऐसी ही लाखों महिलाओं को सिर्फ इस एक मासूम से सवाल का जवाब सरकार से चाहिए।
[B]लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं[/B]
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