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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

प्रेरक कहानी: अरविन्द केजरीवाल को समर्पित..

एक दिन एक गणितज्ञ ने जीरो से लेकर नौ अंक तक की सभा आयोजित की। सभा में जीरो कहीं दिखायी नहीं पड़ रहा था। सभी ने उसकी तलाश की और अंततः उसे एक झाड़ी के पीछे छुपा हुआ पाया। अंक एक और सात उसे सभा में लेकर आये।

गणितज्ञ ने जीरो से पूछा - "तुम छुप क्यों रहे थे?"

जीरो से उत्तर दिया - "श्रीमान, मैं जीरो हूं। मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इतना दुःखी हूं कि झाड़ी के पीछे छुप गया।"

गणितज्ञ ने एक पल विचार किया
 और तब अंक एक से कहा कि समूह के सामने खड़े हो जाओ। अंक एक की ओर इशारा करते हुए उसने पूछा - "इसका मूल्य क्या है?" सभी ने कहा - "एक"। इसके बाद उसने जीरो को एक के दाहिनी ओर खड़े होने को कहा। फिर उसने सबसे पूछा कि अब इनका क्या मल्य है? सभी ने कहा - "दस"। इसके बाद उसने एक के दाहिनी ओर कई जीरो बना दिए। जिससे उसका मूल्य इकाई अंक से बढ़कर दहाई, सैंकड़ा, हजार और लाख हो गया।

गणितज्ञ जीरो से बोला - "अब देखिये। अंक एक का अपने आप में अधिक मूल्य नहीं था परंतु जब तुम इसके साथ खड़े हो गए, इसका मूल्य बढ़कर कई गुना हो गया। तुमने अपना योगदान दिया और बहुमूल्य हो गए।"

उस दिन के बाद से जीरो ने अपनेआप को हीन नहीं समझा।

मोरल:-(हम इस कहानी में जीरो की तुलना देश के "आम आदमी" से कर सकते है..
और बाकी अंको की तुलना देश के नेताओ से.. हम उनके साथ है तो वो ताकतवर है और अगर उनके खिलाफ है तो वो कुछ भी नही!)

अब फैसला हमे करना है अरविन्द भाई का समर्थन करके उन्हें ताकत प्रदान करे या भ्रष्ट नेताओ का समर्थन करके उन्हें...

फैसला "आप" का वोट भी "आप" का...

"आर्यन कोठियाल"{एक आम आदमी}

3 टिप्‍पणियां:

  1. गाँधी जी का अहिंसा वादी भारत
    Makkhan Lal Poonia
    गाँधी जी का अहिंसा वादी भारत :- दादाजी जी की वो बात आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है , में बहुत बार याद करके मन ही मन में गर्व महशुश करता हूँ कि मुझे भी अहिंसा वादी दादाजी के संस्कार मिले !
    बात उन दिनों की ह जब गाँव में लोग फसल काट कर अपने खेत से घर लाते थे , ज्यादातर लोग अपनी फसल बेल गाड़ी या भेंसा गाड़ी या फिर ऊँट गाड़ी से लाते थे , में भी दादाजी के साथ खेत में गया हूवा था जिसे हम फ़िलहाल देव नगर (भांड याली ) के नाम से जानते है , शाम के लगभग 6:00 का समय था ,चारों और से पक्षियों की आवाज सुनाई दे रही थी , हम भी हमारे गाँव (गुंगारा ) में प्रवेश किया ,दादाजी गाड़ी के पीछे चल रहे थे, में उनके साथ था , गाँव में एक बुजरग वक्ती अपने घर से बहार निकला और दादाजी को को गाली बक दी , दादाजी ने पहले तो ध्यान से सुना और और फिर उस बुजरग वक्ती को बोले " देख वो , कशोक बोल्यो हे , कोई बात कोनि , आज्या चिलम पील , उसके गाली बोलने पर भी दादाजी ने बिलकुल घुसा नहीं किया और उसको सामान दिया ! ये सुनते ही वो वक्ति शर्मिंदा हो कर अपने घर में घुस गया , वहां पर खड़े कई लोग देखते ही रह गए ! उस दिन बाद वो वक्ती दादाजी के सामने आने से भी शर्मिंदा होता था !
    ये शब्द बोलने के पीछे उस वक्ति का कारण ये था कि मेरे बड़े भैया और उस वक्ति का लड़का दोनों एक साथ रहते थे और शाम को देर तक घर नहीं लोटते थे और वो मेरे भाई की वजह से दादाजी को गाली दे रहा था !
    एसी बहुत सी बात मेरे दादाजी में थी , जेसे दादाजी कहीं भी जाते तो रास्ते में सभी से राम - राम करके चलते थे कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचते थे और तो और रास्ते में पड़ी छड़ी को भी रास्ते वो हटाये बगेर नहीं चलते थे !


    में हूँ ! आम आदमी !
    मक्खन लाल पूनिया

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