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बुधवार, 28 नवंबर 2012

आम आदमी पार्टी(आप)की चुनोतिया

Ravi Kumar Sinha द्वारा.....भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में राजनीतिज्ञों के हाथ मात खा चुके अरविन्द केजरीवाल अब खुद राजनीति करेंगे. अपनी पार्टी के नाम की घोषणा के साथ वो विधिवत मैदान में आ गए है. आम आदमी पार्टी का लक्ष्य अब आम आदमी को प्रत्यक्ष रूप से सत्ता में भागीदारी दिलाने का है. इसके लिए उन्होंने अपना राजनितिक एजेंडा मीडिया के सामने रखा. इसके साथ ही अब औपचारिक रूप से अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी उस बिरादरी का हिस्सा बन गए है जिसे कभी कोसते उनकी सुबह-शाम गुजरती थी. पहले राजनीतिज्ञों के साथ बहस में जनता की सहानुभूति उनके साथ होती थी. पर राजनीति के मैदान में आने के बाद जनता का रूख क्या होगा ये जानना बड़ा दिलचस्प होगा.
राजनीति एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. पार्टी बनाने के बाद ही असली खेल शुरू हुआ है. अब उनके स्वाभाव और बातों के वजन का सही आकलन होगा. उनकी एक गलती सारे समीकरण बदल सकती है. अन्ना से अलग होने के बाद कई खुलासे और आन्दोलन कर चुके अरविन्द अपने किसी भी मुद्दे पर लगातार कायम नहीं रह सके. किसी भी मुद्दे को अपने अंजाम पर पहुंचा नहीं सके. अब रोज-रोज की होने वाली राजनीति में वो कैसे-कैसे मुद्दे खोजेगें ये देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा. लगभग सवा अरब की जनसंख्या वाले इस देश में भ्रष्टाचार के अलावा और कई मुद्दे है जिनपर उनकी राजनितिक सोच को सामने आना बाकि है.

आम आदमी की पार्टी होने के नाते अरविन्द को आम आदमी से जुड़ना चाहेंगे. लोकलुभावन मुद्दों को फिलहाल वो जनता के सामने रख रहे है. राजनितिक सुधार, चुनाव सुधार, पार्टी में सुचिता जैसे मुद्दों पर तो वो बात कर रहे हैं. पर गरीबी, बेरोजगारी, माओवाद, कश्मीर जैसे मुद्दों पर खामोश है. जनता ये राय जल्द से जल्द जानना चाहेगी ताकि वो इस पार्टी के प्रति अपने राय बना सके. लोकतंत्र में धारणा का महत्त्व वो भली-भांति समझते है.

पार्टी का देशव्यापी संगठन बनाने और उसे फ़ैलाने में खासा समय लग सकता है. अब तक के अनुभव यही कहते है. कई पार्टियों को कुछ क्षेत्रों में अच्छा करने के बावजूद फैलने में असफलता हाथ लगी है. उम्मीद है अरविन्द ने इस बारे में कुछ ठोस सोचा होगा. अभी उनका निशाना कांग्रेस और भाजपा है. पर आने वाले दिनों में निश्चित रूप से उनका बाकी सारी पार्टियों से भी दो-दो हाथ होगा. उनके मैदान में आने से किसके वोट बैंक में सेंध लगेगी ये उनके लादे जाने वाले पहले चुनावों से ही स्पष्ट हो जायेगा.

सही मायेनों में उनके लिए पहला चुनाव ही असली अग्निपरीक्षा है. अगर उनको राजनीति के मैदान में लम्बी पारी खेलनी है तो चुनाव में उतरने से पहले उनकी तैयारी एकदम पुख्ता होनी चाहिए. अगर वो बिना धनबल और बाहुबल के एक भी चुनाव की नैया पार लगा पाने में सक्षम हुए तो भारत की राजनितिक प्रणाली को बदलने से कोई नहीं रोक सकेगा. ये सड़ी-गली व्यवस्था खुद-बखुद ठीक होते चली जाएगी.

एक बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेवारी अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियों के सामने है. जिसे पूरा करने की उनलोगों को हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. उन्हें उतना ही सब्जबाग जनता को दिखाना चाहिए जितना आम आदमी पार्टी के लोग कर सके. वरना एक आस टूटेगी, एक गलत सन्देश जाएगा. उम्मीद है ऐसा नहीं होगा और सभी संस्थापक सदस्य पार्टी को आज के दौर की पार्टियों से अलग एक ऐसी पार्टी बनायेगे जो काफी ऊँचाइयों तक जाएगा.

आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी से अगर आम आदमी जुड़ने लगेगा तब ही कहा जा सकेगा कि ये सचमुच आम आदमी पार्टी है.

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