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शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

हम वोटिंग के समय क्यों बिक जाते है?

कल रात अपने एक कांग्रेसी मित्र से बात हो रही थी..
वो बता रहे थे की उन्होंने जिला पंचायत बनने के लिए एक-एक आदमी को हजार-हजार रूपये दिए...
उन्होंने मुझे बताया की पहली बार जब उन्होंने ईमानदारी से चुनाव लड़ा तो जनता ने उन्हें हरा दिया पर जब उन्होंने बेईमानी का सहारा लिया तो उसी जनता ने उन्हें उसी सिट से जीता दिया..


अब वो कह रहे थे की हमने चुनाव में दस लाख रूपये लगाये है, और अब मेरा छोटा भाई खूब भ्रष्ट
ाचार करके वो सारा पैसा वसूल कर रहा है..
खेर मुझे कोई आपति नही है उनका भाई वो पेसे वापस वसूल कर रहा है तो..
पर एक चिंता जरुर होती है मन में की अगर एक पंचायत के चुनाव में इतना खर्चा हो रहा है..इनता भ्रष्टाचार हो रहा है,तो हमारे विधानसभा और संसद के चुनाव में क्या होता होगा...
उनकी बाते सुनकर कल ऐसा लगा की शायद हम भी भ्रष्टाचार के लिए, गुंडों, मवालियो, बलात्कारियो को टिकेट देने के लिए जिम्मेवार है.. आखिर जब भारतीय जनता पार्टी ने अपनि पार्टी से रेड्दरी बंधुओ को निकाला तो उन्होंने दुबारा चुनाव लड़ा और जीते भी और दुसरे प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त करा दी?
इन सब के लिए जिम्मेवार कोन?
क्या आम आदमी अब बदलेगा या अभी भी दारू,सरकारी जमीन में गेर सरकरी कब्जे के बदले वोट देगा..
शायद हम बदले तो ये पार्टिया भी बदले कब तक बस गालियाँ देते रहेंगे नेताओ को कभी अपने अंदर भी झांके
एक आम आदमी द्वारा आप सभी आम आदमियों के हित में जारी अगर हम बिक तो कल देश बिक जायेगा..

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