समदर्शी ने शायद सबसे पहले लिखा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बहुप्रचारित ईमानदार छवि का मुलम्मा एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये के टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले से ले कर 70 हजार करोड़ रुपये के राष्ट्रमंडल खेल घोटाले तक भ्रष्टाचार के अंतहीन सिलसिले में मूकदर्शक बने रहने से दरकने लगा है। अब एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले ने उस मुलम्मे को पूरी तरह तार-तार ही कर दिया है। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले का ठीकरा द्रमुक कोटे के संचार मंत्रियों दयानिधि मारन और ए.के. राजा के सिर तथा राष्ट्रमंडल खेल घोटाले का ठीकरा सुरेश कलमाड़ी के सिर फोड़ कर अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच निकलने की कोशिश करने वाले मनमोहन कोयले की कोठरी में ऐसे फंसे हैं कि बेदाग निकलना नामुमकिन है। दरअसल टू जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस की तरह कोयला खदानों की भी बिना नीलामी चहेती निजी कंपनियों को बंदरबांट की गयी, जिससे सरकारी खजाने को एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। कोयला खदानें भी दो-चार नहीं, बल्कि 194 आवंटित की गयीं। वर्ष 2004 से 2009 के बीच अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों की ये रेवड़ियां चहेती कंपनियों को बांटी गयीं। बेशक मनमोहन सिंह सरकार के आठ साल के कार्यकाल में खुली लूट का यह पहला मामला नहीं है, पर खुद प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर देने वाला यह पहला घोटाला अवश्य है। जिस अवधि में कोयला खदानों की यह बंदरबांट हुई, उसमें ज्यादातर समय कोयला मंत्रालय मनमोहन स्वयं संभाल रहे थे यानी इस बार बचने का गठबंधन धर्म की मजबूरी बता सकने जैसा कोई चोर दरवाजा भी नहीं है। यही कारण है कि टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में 'कैग' की रपट के बाद ही संचार मंत्री ए.के. राजा का इस्तीफा ले लेने वाले मनमोहन अब कोयला घोटाले में नैतिकता की मिसाल पेश करने से भागते नजर आ रहे हैं।
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