मनमोहन सिंह सरकार ने डीजल के
दाम में पांच रुपये प्रति लीटर
की अभूतपूर्व बढ़ोतरी कर दी है।यह
किसी से छिपा हुआ नहीं है
कि डीजल की कीमतों में
दाम में पांच रुपये प्रति लीटर
की अभूतपूर्व बढ़ोतरी कर दी है।यह
किसी से छिपा हुआ नहीं है
कि डीजल की कीमतों में
बढ़ोतरी का कीमतों पर
चौतरफा असर होगा। यानी इस तरह
महंगाई के बोझ तले पहले ही पिस
रही जनता पर और भारी बोझ डाल
दिया गया है। महंगे पेट्रोल
की तुलना में महंगा डीजल
अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा घातक
होता है, क्योंकि ढुलाई महंगी होने
से आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ जाते
हैं।
इस बढ़ोतरी की खेती, खास तौर से
किसानों पर, बहुत भारी मार पड़ने
जा रही है। इसी तरह, नियंत्रित
कीमतों पर मुहैया कराए जाने वाले
गैस सिलेंडरों की संख्या छह तक
सीमित किए जाने की मार
करोड़ों परिवारों के घरेलू बजट पर
पड़ेगी और उन्हें कहीं न कहीं से
कटौती करनी पड़ेगी। पांच
व्यक्ति के औसत परिवार के लिए एक
सिलेंडर से दो महीने
गुजारा करना किसी भी तरह संभव
नहीं है।
लेकिन यह बढ़ोतरी क्यों? सरकार
की ओर से पूरे देश
को बताया जाता रहा है कि बढ़ते
राजकोषीय घाटे और तेल
कंपनियों के बढ़ते घाटों पर अंकुश
लगाने के लिए
ऐसी बढ़ोतरी जरूरी है। इससे
बड़ा झूठ दूसरा नहीं हो सकता।
सचाई यह है कि हमारे सकल घरेलू
उत्पाद के 6.9 फीसदी के ऊंचे स्तर पर
भी राजकोषीय घाटा वास्तव में
करीब 5.22 लाख करोड़ रुपये
का घाटा ही बैठेगा। लेकिन पिछले
वित्त वर्ष में ही तो उसी सरकार ने
कॉरपोरेट
खिलाड़ियों तथा धनी तबकों को पूरे
5.28 लाख करोड़ रुपये की कर
रियायतें दी हैं।
जो पहले ही संपन्न हैं, उन पर अगर यह
भारी रकम नहीं लुटाई गई होती,
तो सरकारी खजाने पर राजकोषीय
घाटे का कोई बोझ होता ही नहीं।
लेकिन धनी तबकों पर यह
भारी राशि लुटाने के बाद यूपीए
की सरकार अब राजकोषीय घाटे पर
अंकुश लगाने के नाम पर जनता के
विशाल बहुमत पर बढ़ता हुआ बोझ
थोप रही है, और इसके लिए
गरीबों तथा जरूरतमंदों को जो भी थोड़ी-
बहुत सबसिडी अब तक हासिल
थी, उस पर भी कैंची चला रही है।
फिर एक सवाल यह भी है
कि क्या सार्वजनिक तेल
कंपनियां वाकई घाटे में चल रही हैं?
आइए, एक नजर तथ्यों पर डाल
ली जाए। भीमकाय तेल
तथा प्राकृतिक गैस कंपनी,
ओएनजीसी ने 2011-12 के लिए
25,123 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ
का ऐलान किया है। इसी प्रकार
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने
2011-12 में 4,265.27 करोड़ रुपये
का शुद्ध मुनाफा घोषित किया था।
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन
लिमिटेड ने भी मुनाफे
की घोषणा की थी। दिलचस्प बात
यह है कि पिछले वित्त वर्ष
की अंतिम तिमाही में इस कंपनी ने
अपने शुद्ध मुनाफे में पूरे 312 प्रतिशत
की बढ़ोतरी दर्शाई थी।
जब हम इन तथ्यों को ध्यान में रखते
हैं, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक
है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे और तेल
कंपनियों के बढ़ते घाटे आखिर हैं
कहां?
जाहिर है कि देश की जनता के साथ
बहुत
बड़ी धोखाधड़ी की जा रही है।
किसी भी तरह जनता पर और बोझ
बढ़ाने की इजाजत नहीं दी सकती।
इससे तो उसकी पहले से ही बदहाल
जिंदगी और मुश्किल हो जाएगी।
बड़े पैमाने पर विरोध कार्रवाइयों के
जरिये ही यूपीए सरकार
को कीमतों में इस तरह
की बढ़ोतरी से बाज आने के लिए
मजबूर किया जा सकता है। अब
सड़कों पर उतरने के
सिवा दूसरा चारा नहीं है।
चौतरफा असर होगा। यानी इस तरह
महंगाई के बोझ तले पहले ही पिस
रही जनता पर और भारी बोझ डाल
दिया गया है। महंगे पेट्रोल
की तुलना में महंगा डीजल
अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा घातक
होता है, क्योंकि ढुलाई महंगी होने
से आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ जाते
हैं।
इस बढ़ोतरी की खेती, खास तौर से
किसानों पर, बहुत भारी मार पड़ने
जा रही है। इसी तरह, नियंत्रित
कीमतों पर मुहैया कराए जाने वाले
गैस सिलेंडरों की संख्या छह तक
सीमित किए जाने की मार
करोड़ों परिवारों के घरेलू बजट पर
पड़ेगी और उन्हें कहीं न कहीं से
कटौती करनी पड़ेगी। पांच
व्यक्ति के औसत परिवार के लिए एक
सिलेंडर से दो महीने
गुजारा करना किसी भी तरह संभव
नहीं है।
लेकिन यह बढ़ोतरी क्यों? सरकार
की ओर से पूरे देश
को बताया जाता रहा है कि बढ़ते
राजकोषीय घाटे और तेल
कंपनियों के बढ़ते घाटों पर अंकुश
लगाने के लिए
ऐसी बढ़ोतरी जरूरी है। इससे
बड़ा झूठ दूसरा नहीं हो सकता।
सचाई यह है कि हमारे सकल घरेलू
उत्पाद के 6.9 फीसदी के ऊंचे स्तर पर
भी राजकोषीय घाटा वास्तव में
करीब 5.22 लाख करोड़ रुपये
का घाटा ही बैठेगा। लेकिन पिछले
वित्त वर्ष में ही तो उसी सरकार ने
कॉरपोरेट
खिलाड़ियों तथा धनी तबकों को पूरे
5.28 लाख करोड़ रुपये की कर
रियायतें दी हैं।
जो पहले ही संपन्न हैं, उन पर अगर यह
भारी रकम नहीं लुटाई गई होती,
तो सरकारी खजाने पर राजकोषीय
घाटे का कोई बोझ होता ही नहीं।
लेकिन धनी तबकों पर यह
भारी राशि लुटाने के बाद यूपीए
की सरकार अब राजकोषीय घाटे पर
अंकुश लगाने के नाम पर जनता के
विशाल बहुमत पर बढ़ता हुआ बोझ
थोप रही है, और इसके लिए
गरीबों तथा जरूरतमंदों को जो भी थोड़ी-
बहुत सबसिडी अब तक हासिल
थी, उस पर भी कैंची चला रही है।
फिर एक सवाल यह भी है
कि क्या सार्वजनिक तेल
कंपनियां वाकई घाटे में चल रही हैं?
आइए, एक नजर तथ्यों पर डाल
ली जाए। भीमकाय तेल
तथा प्राकृतिक गैस कंपनी,
ओएनजीसी ने 2011-12 के लिए
25,123 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ
का ऐलान किया है। इसी प्रकार
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने
2011-12 में 4,265.27 करोड़ रुपये
का शुद्ध मुनाफा घोषित किया था।
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन
लिमिटेड ने भी मुनाफे
की घोषणा की थी। दिलचस्प बात
यह है कि पिछले वित्त वर्ष
की अंतिम तिमाही में इस कंपनी ने
अपने शुद्ध मुनाफे में पूरे 312 प्रतिशत
की बढ़ोतरी दर्शाई थी।
जब हम इन तथ्यों को ध्यान में रखते
हैं, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक
है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे और तेल
कंपनियों के बढ़ते घाटे आखिर हैं
कहां?
जाहिर है कि देश की जनता के साथ
बहुत
बड़ी धोखाधड़ी की जा रही है।
किसी भी तरह जनता पर और बोझ
बढ़ाने की इजाजत नहीं दी सकती।
इससे तो उसकी पहले से ही बदहाल
जिंदगी और मुश्किल हो जाएगी।
बड़े पैमाने पर विरोध कार्रवाइयों के
जरिये ही यूपीए सरकार
को कीमतों में इस तरह
की बढ़ोतरी से बाज आने के लिए
मजबूर किया जा सकता है। अब
सड़कों पर उतरने के
सिवा दूसरा चारा नहीं है।
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