ब्रिटेन 1849 से 1942 के बीच भारतीय रेलवे के लिए बने 38 कानूनों को रद्द करने जा रहा है। 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद भी ये कानून ब्रिटेन की कानून पुस्तिका में शामिल रहे। अब भारत की स्वतंत्रता के 65 बरस बाद इन कानूनों को अप्रचलित, गैरजरूरी और अव्यवहारिक मानते हुए हटाने की प्रक्रिया ब्रिटेन में चल रही है।
विधि आयोग के सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेलवे से संबंधित इन 38 कानूनों को रद्द करने के लिए एक विधेयक बनाया गया है। इस विधेयक को न्याय मंत्रालय अगले महीने संसद में पेश करेगा। रद्द करने की प्रक्रिया साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। ये कानून ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद शासन ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित होने के बाद निर्माण और देखरेख के लिए बनाए गए थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी इस क्षेत्र में निजी भागीदारी के पक्ष में थी। भारतीय रेलवे से जुड़े 38 कानूनों को खत्म करने के लिए तैयार किए गए विधेयक के मसौदे में यह बात कही गई है। इसके अनुसार रेल नेटवर्क का भारत में विस्तार करने पर ईस्ट इंडिया 1843 में तैयार हुई।
लेकिन, बढ़ते खर्च के कारण वह निर्माण और परिचालन के खर्च को वहन करने को राजी थी। कंपनी निजी भागीदारी चाहती थी। इसके तहत ब्रिटिश कंपनियों को रेलवे नेटवर्क के निर्माण का खर्च उठाने का न्योता दिया गया। इसके बदले में शेयर धारकों को उनके पूंजी निवेश के बदले पांच प्रतिशत लाभ की गारंटी, मुफ्त भूमि और 99 सालों के लिए उसे चलाने का ठेका देने को तैयार थी।
विधि आयोग के सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेलवे से संबंधित इन 38 कानूनों को रद्द करने के लिए एक विधेयक बनाया गया है। इस विधेयक को न्याय मंत्रालय अगले महीने संसद में पेश करेगा। रद्द करने की प्रक्रिया साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। ये कानून ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद शासन ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित होने के बाद निर्माण और देखरेख के लिए बनाए गए थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी इस क्षेत्र में निजी भागीदारी के पक्ष में थी। भारतीय रेलवे से जुड़े 38 कानूनों को खत्म करने के लिए तैयार किए गए विधेयक के मसौदे में यह बात कही गई है। इसके अनुसार रेल नेटवर्क का भारत में विस्तार करने पर ईस्ट इंडिया 1843 में तैयार हुई।
लेकिन, बढ़ते खर्च के कारण वह निर्माण और परिचालन के खर्च को वहन करने को राजी थी। कंपनी निजी भागीदारी चाहती थी। इसके तहत ब्रिटिश कंपनियों को रेलवे नेटवर्क के निर्माण का खर्च उठाने का न्योता दिया गया। इसके बदले में शेयर धारकों को उनके पूंजी निवेश के बदले पांच प्रतिशत लाभ की गारंटी, मुफ्त भूमि और 99 सालों के लिए उसे चलाने का ठेका देने को तैयार थी।
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