भ्रष्टाचार
के मुद्दे से आखँ चुराने वाले सभी पक्ष सत्ता में आने के लिए अब
हिन्दू-मुस्लिम कलह पर राजनीति करना चाहते हैं! जैसे की हमारे देश के
तथाकथित विपक्ष के पास अब भूख-भ्रष्टाचार जैसा कोई मुद्दा ही नहीं रह गया
हो सिवाय हिन्दू-मुस्लिम राजनीति के!
हाल ही में RSS ने भाजपा को सलाह दी कि धार्मिक मुद्दों को बीच में लाया जाए| सपा यूपी में मस्जिद के नाम पर और भाजपा राम के नाम पर सत्ता की भीख मांगती है|
एक उम्मीद उत्तर प्रदेश के लोगों ने लगा ली थी जब एक साल पहले अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने| पर नतीजा वही, ढाक के तीन पात निकला| भ्रष्टाचार तो अखिलेश सरकार छुपा कर गयी, पर भयमुक्त शासन का सपना, सपना ही रह गया|
महज़ एक साल मे 15 मार्च 2012 से 31 दिसंबर 2012 के बीच राज्य ने 27 दंगो का मुह देखा! इन सबमे कोसिकलां , बरेली, और फ़ैज़ाबाद के दंगे काफ़ी भयानक थे, जिनमे जान माल का काफ़ी नुकसान हुआ|
पीयूसीएल प्रमुख चितरंजन के अनुसार सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति इसके लिए ज़िम्मेदार है| अल्पसंख्यकों के भीतर भय पैदा किया जाता है, ताकि बाद मे उनका सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जा सके| रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब के अनुसार पहले दंगे होने दिए जाते हैं बाद मे उन्हे मुआवज़ा देकर उन्हे सहानुभूति दिखाई जाती है| प्रदेश मे ऐसी क़ानून व्यवस्था है क़ी जनता क्या, खुद पुलिस भी सुरक्षित नहीं है!
"कहते हैं ना, पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं, 5 साल का डेमो 1 साल मे काफ़ी भयावह रहा है!"
अखिलेश सरकार जितनी मर्ज़ी उतने वादे कर ले, पर जब तक इच्छाशक्ति का अभाव होगा और ईमानदारी से शासन नही किया जाएगा, कुछ मुमकिन नही है|
क्या हम इन लोगों के इस खेल में फंस जायेंगे? क्या हम फिर से भारत को उसी गर्त में धकेल देंगे जहां से ये देश बड़ी मुश्किल से निकला है? ये सवाल हमें किसी और से नहीं, खुद से करना है. आपका क्या जवाब है?
हाल ही में RSS ने भाजपा को सलाह दी कि धार्मिक मुद्दों को बीच में लाया जाए| सपा यूपी में मस्जिद के नाम पर और भाजपा राम के नाम पर सत्ता की भीख मांगती है|
एक उम्मीद उत्तर प्रदेश के लोगों ने लगा ली थी जब एक साल पहले अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने| पर नतीजा वही, ढाक के तीन पात निकला| भ्रष्टाचार तो अखिलेश सरकार छुपा कर गयी, पर भयमुक्त शासन का सपना, सपना ही रह गया|
महज़ एक साल मे 15 मार्च 2012 से 31 दिसंबर 2012 के बीच राज्य ने 27 दंगो का मुह देखा! इन सबमे कोसिकलां , बरेली, और फ़ैज़ाबाद के दंगे काफ़ी भयानक थे, जिनमे जान माल का काफ़ी नुकसान हुआ|
पीयूसीएल प्रमुख चितरंजन के अनुसार सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति इसके लिए ज़िम्मेदार है| अल्पसंख्यकों के भीतर भय पैदा किया जाता है, ताकि बाद मे उनका सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जा सके| रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब के अनुसार पहले दंगे होने दिए जाते हैं बाद मे उन्हे मुआवज़ा देकर उन्हे सहानुभूति दिखाई जाती है| प्रदेश मे ऐसी क़ानून व्यवस्था है क़ी जनता क्या, खुद पुलिस भी सुरक्षित नहीं है!
"कहते हैं ना, पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं, 5 साल का डेमो 1 साल मे काफ़ी भयावह रहा है!"
अखिलेश सरकार जितनी मर्ज़ी उतने वादे कर ले, पर जब तक इच्छाशक्ति का अभाव होगा और ईमानदारी से शासन नही किया जाएगा, कुछ मुमकिन नही है|
क्या हम इन लोगों के इस खेल में फंस जायेंगे? क्या हम फिर से भारत को उसी गर्त में धकेल देंगे जहां से ये देश बड़ी मुश्किल से निकला है? ये सवाल हमें किसी और से नहीं, खुद से करना है. आपका क्या जवाब है?
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