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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

समझ अज्ञाने की


समझ अज्ञाने की

वर्तमान समाज के हालातों को दो मुख्य हिस्सों में देखा जाय. पहला — क्या गलत है, जिसको ठीक करने के लिए संघर्ष की जरुरत है. दूसरा – बिना संघर्ष के कौन - कौन सी सृजनात्मक गतिविधियाँ आपसी समझदारी और तालमेल से पूरी की जा सकती हैं. दोनों मुद्दों पर चर्चा और ठोस काम साथ - साथ चले.
आज, व्यवस्था के हर अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका), एक अजीब सुनियोजित षड्यंत्र के अन्दर अपंगु हो गए हैं. शायद, शक्ति केन्द्रीकरण इस कुव्यवस्था के लिए जिम्मेदार है. प्रभावी और सक्षम विकेंद्रीकरण ही समाधान होगा, और उसके लिए सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन ही एकमात्र निदान दिखायी पड़ता है.
दूसरी साजिश ने व्यक्ति की मानसिकता और समाज की दो सौ साल पहले की सक्रियता जिसे संस्कृति कहा जाता है, पूरी तरह विकृत कर दी है. अज्ञान और असभ्य हरकतों में लिप्त मनुष्य को उबारने की प्रक्रिया काफी जटिल है, फिर भी अगर चन्द योग्य व्यक्ति भी समझदारी और आपसी तालमेल से कार्य शुरू करें तो बहुत आसानी से लक्ष्य प्राप्ति हो जायेगी क्योंकि पारम्परिक सभ्यता की जड़ें आज भी गहरी हैं.
अपने से आरम्भ करते हुए, सबसे पहले अपने परिवार और मित्र मंडली इकाई में खुली चर्चा हो, कि जो भी अवांछनीय या अशोभनीय है, उसमें न खुद को लिप्त करेंगे और नहीं किसी और को करने दिया जाएगा. इसी तरह छोटी मंडलियाँ पड़ोसी इकाई से तालमेल बनाते हुए ग्राम/ मोहल्ले इकाईयों को सुनियोजित करें. इसके लिए सिर्फ प्रेरणा ही शक्ति है, ऊपर से किसी आदेश का इंतज़ार न किया जाय. फिर, पड़ोसी गाम/ मोहल्ले इकाईयां आपस में मिलकर ब्लोक, तहसील, जिला, राज्य और केन्द्रीय इकाईयों तक सम्बन्ध स्थापित करें.
ध्यान रखें, समाज में अच्छे विचार वाले लोगों की संख्या अधिक है. सिर्फ कमी है तो एकत्रीकरण की. पहल करें, अपनी पहुँच विस्तृत करें. अपने दृढ संकल्प से जुड़ने और जोड़ने की प्रक्रिया जारी रखें. अनीति और अत्याचार किसी भी द्वारा हो, तिरष्कृत किया जाय. प्रेम, ज्ञान और मर्यादा पर आधारित सामाजिक प्रणाली स्थापित किया जाय.

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