ये लघु कथा.. एक आम आदमी द्वारा केंद्र की सरकार को महंगाई के लिए धन्यवाद स्वरूप है..इसे पड़ने के बाद सबसे पहले आपके मन में क्या आया कमेन्ट बॉक्स में जरुर लिखे.....
रघुवीर अपने बीमार बच्चे के लिए फल खरीदने के लिए आया था। फलों के बढ़े हुए दाम सुनकर मन ही मन सोच रहा था, ‘क्या लूं और क्या न लूं? लूं भी कुछ या न लूं? लेना तो पड़ेगा थोड़ा बहुत शंकर के लिए। कितनी महंगाई हो गई है? फलों के दाम भी कहां से कह
रघुवीर अपने बीमार बच्चे के लिए फल खरीदने के लिए आया था। फलों के बढ़े हुए दाम सुनकर मन ही मन सोच रहा था, ‘क्या लूं और क्या न लूं? लूं भी कुछ या न लूं? लेना तो पड़ेगा थोड़ा बहुत शंकर के लिए। कितनी महंगाई हो गई है? फलों के दाम भी कहां से कह
ां पहुंच गए हैं?’
तभी एक अमीर महिला कार से उतरी। उसने बिना दाम पूछे एक किलो बढ़िया सेब और एक दर्ज़न बढ़िया केले खरीदे और पांच सौ रुपए का नोट निकालकर दुकानदार को पकड़ा दिया। दुकानदार ने चार सौ और कुछ रुपए उसे वापस कर दिए। रुपए वापस मिलते देख बरबस ही उस महिला के मुंह से निकला, ‘फ्रू ट तो सस्ते ही चल रहे हैं।’
यह सुनकर रघुवीर ने उस औरत की तरफ देखा। उसे लगा कि महंगाई नहीं बढ़ी है, सिर्फ उसी के पास रुपए नहीं है। जिसके पास रुपए हैं, उसके लिए कोई महंगाई नहीं है।
..वह वहीं खड़ा था और वह महिला जा चुकी थी।
"आर्यन कोठियाल"(एक आम आदमी)
तभी एक अमीर महिला कार से उतरी। उसने बिना दाम पूछे एक किलो बढ़िया सेब और एक दर्ज़न बढ़िया केले खरीदे और पांच सौ रुपए का नोट निकालकर दुकानदार को पकड़ा दिया। दुकानदार ने चार सौ और कुछ रुपए उसे वापस कर दिए। रुपए वापस मिलते देख बरबस ही उस महिला के मुंह से निकला, ‘फ्रू ट तो सस्ते ही चल रहे हैं।’
यह सुनकर रघुवीर ने उस औरत की तरफ देखा। उसे लगा कि महंगाई नहीं बढ़ी है, सिर्फ उसी के पास रुपए नहीं है। जिसके पास रुपए हैं, उसके लिए कोई महंगाई नहीं है।
..वह वहीं खड़ा था और वह महिला जा चुकी थी।
"आर्यन कोठियाल"(एक आम आदमी)
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