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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

दीपक चौरसिया से कहीं ज्यादा मीडिया जागरुक हैं अरविंद केजरीवाल

 हुंकार ब्लॉग से...विनीत कुमार जी द्वारा...
अरविंद केजरीवाल ने इंडिया न्यूज को लेकर जो ट्वीट किया है, वो उनकी इधर कुछ महीने से मीडिया के प्रति बढ़ी समझदारी के संकेत हैं. लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस और पुरानी रिर्काड के बूते ही सही एक के बाद एक जो वो खुलासे की शक्ल में जो प्रेंस कॉन्फ्रेंस करते आ रहे हैं, उससे कुछ नहीं तो एक बात तो स्पष्ट है कि मीडिया के प्रति उनकी समझदारी और उसके चरित्र को लेकर नजरिया साफ हो रहा है. अब वो ठीक-ठीक समझ पा रहे हैं कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा के बजाय कॉर्पोरेट और सरकार का वो धंधा है जिसमें वो खंभे के बजाय दोधारी तलवार का काम करता है. एक तरफ जनता की साख की हत्या करता है और दूसरी तरफ खूंखार मालिकों को प्रतिरोध करनेवाली ताकतों से रक्षा करता है.
अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है - इंडिया न्यूज विनोद शर्मा का चैनल हैं, विनोद शर्मा मनु शर्मा के पिता हैं. वही मनु शर्मा जिसने मॉडल जेसिका लाल की हत्या की है. विनोद शर्मा का संबंध कांग्रेस से हैं.
केजरीवाल ने अपनी इस ट्वीट में एक तरह से मीडिया खासकर इंडिया न्यूज की ठीक-ठीक व्याख्या कर दी है कि जिसे आम जनता लोकतंत्र का चौथा खंभा मानकर पूजते आए हैं वो दरअसल सत्ता, राजनीति, अपराधी, कार्पोरेट और यहां तक कि स्वयं पत्रकारों/मीडियाकर्मी की मिली-जुली खेती है जिसका हर हालत में उन्हीं को लाभ मिलना है जो इससे संबद्ध हैं. यहां पत्रकारों को भी इस मालिक के मुनाफे के खएल में शामिल करना औऱ अलग से रेखांकित करना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि अब मीडिया संस्थान शेयर के रुप में एक हिस्सा मालिकाना हक भी दे देते हैं ताकि वो लगातार संस्थान के पक्ष में काम करता रहे और अगर नहीं करने की स्थिति की बात करे तो नुकसान सहने के लिए तैयार रहे. इंडिया न्यूज मामले में भी चर्चित चेहरे दीपक चौरसिया को भी इसी बिना पर लाया गया है.
अरविंद केजरीवाल ने इंडिया न्यूज को लेकर ठीक ऐसे समय पर ट्वीट किया है जब ये संस्थान एक के बाद एक चर्चित चेहरे और जिनमे से कुछ तो जेसिका लाल के पक्ष में खबरें करते आए थे, जुटाने शुरु किए हैं. दीपक चौरसिया के साथ-साथ पुण्य प्रसून वाजपेयी के भी यहां आने की खबर की पुष्टि स्वयं दीपक चौरसिया ने न्यूजलॉड्री में अभिनंदन सिकरी को दिए इंटरव्यू में की थी..ये अलग बात है कि वाजपेयी इसे झुठलाते हुए आजतक का दामन थाम लिया. दूसरा कि चुनाव को ध्यान में रखते हुए जब टटपुंजिए चैनल भी ब्यूरों खोलने से लेकर संस्करण बढ़ाने का काम तेजी से कर रहे हैं, ऐसे में इंडिया न्यूज जिसका मालिक ही कांग्रेसी है, क्या आश्चर्य है कि अपने और पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए इसे एक तेज हथियार के रुप में तैयार करे. दीपक चौरसिया सहित नई टीम के बनने से लेकर न्यूजx का विलय और विदेशी नेटवर्क से समझौते इसकी कड़ी है. ऐसा करके कुल मिलाकर विनोद शर्मा ने व्यापक रुप से ये संदेश देने का काम किया है कि बात चाहे दीपक चौरसिया की हो या फिर किसी दूसरे मीडिया चर्चित चेहरे की, पैसे के आगे सबको अपना अनुचर बनाया जा सकता है और मीडियाकर्मी ऐसे जटिल शख्स नहीं होते जिन्हें कि मैनेज नहीं किया जा सकता. कल को मनु शर्मा के बाहर आने पर उनके निर्देश पर मीडियाकर्मी स्टोरी गिराने और हेडलाइंस बनाने शुरु कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं.
अरविंद केजरीवाल को ये सारी बातें हालांकि काफी बाद में समझ आयी और खासकर तब जब मीडिया ने सरकार के दवाब में आकर उनके आंदोलन की कवरेज न के बराबर कर दी. नहीं तो इससे पहले वो आंदोलन के लोकप्रिय होने में बार-बार न केवल उसी कार्पोरेट मीडिया का शुक्रिया अदा कर रहे थे बल्कि उससे शाबासी भी बटोर रहे थे.याद कीजिए सीएनएन-आइबीएन सम्मान और उस दौरान केजरीवाल के वक्तव्य. केजरीवाल ने हालांकि ये सब स्ट्रैटजी के तहत ही किया था और इस बात का अंदाजा लगा रहे थे कि मीडिया भ्रष्टाचार पर बोलने का मतलब है उससे पंगा लेना और आंदोलन की गति को कम करना लेकिन ऐसा करने के बावजूद उन्हें समझ आ गया कि मीडिया पंगे और दोस्ताना संबंधों पर नहीं "माल" पर चलता है और अगर उनके बजाय कार्पोरेट और सरकार देती रहे तो आंदोलन की दो दिन में हवा निकाली जा सकती है. लेकिन
मौजूदा ट्वीट को एक तरफ तो मीडिया के प्रति केजरीवाल की परिवक्व समझ के रुप में देखा जाना चाहिए,दूसरा कि उस भरोसे के मजबूत होने के भी संकेत हैं कि अगर मेनस्ट्रीम मीडिया ने उन्हें इस रवैये के बाद नकारना भी शुरु कर दिया तो वो सोशल मीडिया और आपसी जनसंपर्क से काम चला लेंगे. ट्वीट के पीछे जो खबर हम तक आ रही है कि केजरीवाल इस चैनल पर बोलने गए थे और उन्हें पहले आश्वस्त कर दिया गया था कि उन्हें भरपूर मौका दिया जाएगा. जो बात उन्होंने ट्वीट की है, वही बात चैनल पर जाकर भी कही है. इसका मतलब है कि चैनलों के बीच उन्होंने ये संदेश दे दिया है कि किसी के भी साथ ऐसा हो सकता है और जाहिर है कि सबकी गर्दन कहीं न कहीं फंसी है. ऐसी स्थिति में मेनस्ट्रीम मीडिया उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज भी करती है तो भी लोगों के बीच उनका यकीन पहले के मुकाबले बढ़ेगा और ये यकीन सोशल मीडिया और गली-मोहल्ले की गप्पबाजी के बीच और मजबूत होगी. इसमे कोई शक नहीं कि केजरीवाल ने ऐसा करने बड़ी रिस्क ली है लेकिन एक मॉडल को लांच भी किया है..अगर ये मॉडल सफल हो गया तो मेनस्ट्रीम मीडिया की ताबूत की एक कील साबित होगी. अपनी तमाम बेशर्मी को ढोते हुए मीडिया का ये रुप बरकरार रहेगा लेकिन घटती साख की गति और तेज होगी.

5 टिप्‍पणियां:

  1. जिस प्रकार गीदड् का झुन्ड अपने से बडे शीकार को दौडा दौडा कर थका थका कर ढेर कर देता है , उसी प्रकार काग्रेस भी अपने दुश्मन को भी दौडा थका कर ढेर कर देता है .
    जनलोकपाल रुपी आन्दोलन जब अन्ना के नेत्रीत्व मे अचानक हाथी के रुप मे प्रकट हुआ तब उस आन्दोलन मे हिन्दुत्व विचारधारा वाली निश्वार्थ शक्तिया , काग्रेस के तानाशाही रवैये से उब चुके मिडिया सब का मीला जुला सहयोग था . जब इस आन्दोलन की बवन्डर रुपी हाथी को अपने तरफ आते देख काग्रेस रुपी गिदड् के हाथ पैर फुल गये लेकीन उसने धैर्य नही खोया . उसने उस हाथी के सारे नखरे सहे सारी मागे मानी और‌ समय लिया अपनी धुर्तता का लोहा मनवाने के लिये . समय निकलने के पश्चात जब हाथी दुबारा वापस आया तब साथ मे अहन्कार लेकर आया अब उसे सेक्यूलर नाम की बिमारी भी लग चुकी थी . अब इस बिमारी को काग्रेसी गीदड् तुरन्त पहचान लिये . अब थकाने कि रणनीति के तहत दुबारा समय लिया . लेकिन तिसरी बार जब यॆ हाथी आया तो पुरी तरह बिखर चुका था . अन्ना अलग केजरीवाल अलग .रामदेव जी अलग .
    अब इस थके और बिखरे हाथी पर हमला करना गिदड् के इस अभेद्य झुन्ड के लिये बाये हाथ का खेल है . जब पुरा देश काग्रेस के विरुद्ध खडा है अब उसको भाजपा , आम आदमी पार्टी . रामदेव जी की पार्टी आदी आदी रुपो मे बिखरा दीया गया है . इसके अलावा भाजपा मे नीरस और सवर्ण नेताओ की इतनी पकड वाली फौज है जीस पर अत्यन्त पिछडो और दलितो को भरोसा ही नहि है और उन्ही लोगो द्वारा मोदी और अन्य लोकप्रिय नेताओ को पीछे ढकेलने मे लगे हुए है
    अब जबकि जीस‌ हाथी मे इतनी कमजोरी हो तो उसको ढेर करने मे दिक्कत क्या है ? तुर्रा ये की काग्रेस ने घोटालो से इतनी रकम जमा कर लिये की 272 सिटो के लिये एक एक वोटरो को देने के लिये काफी होगा .
    जरा सोचिये 1 घोटाले मे 1 लाख छिहत्तर हजार करोण रुपिया और इसके जैसे 9 घोटाले . अब आप देश कि आबादि देखिये और इस एक लाख छिहत्तर हजार करोण को इकाइ की सन्ख्या मे गुणा भाग करिये .अगर इसमे दिमाग काम कर ले बाकी के 9 घोटालो के पैसो का गुणा भाग करिये .
    अभी तो कुछ ही पत्रकार और चेनल बिके हुए है , दिपक चौरसिया इन्डिया टिवी अभी तो ट्रेलर मात्र है . अभी मुख्य चेनलो का बीकना बाकि होगा या बीक चुका होगा .
    2014 का चुनाव केजरीवाल . मोदी . रामदेव जी बीजेपी सबको सुधरने और एकजुट होने के लिये राह देख रहा है . फिर भी नही सुधरे तो 65 सालो से जो व्यवस्था चली आ रही वो तो है ही . वही गरीबि वही भुखमरी हर नकारात्मक चीजो मे भारत पहले पायदानो पर . वही काग्रेसी सरकार वही घोटाले और सीमा पर बर्बतापुर्वक शहीद होते जवान, अव्यवस्था और अन्यायपुर्ण व्यवस्था से उपजे आक्रोशित गरीब नक्सलाइट गीरोह .

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    1. आज दीपक चौरसिया जी को कुमार विश्वास के साथ शाम 8 बजे इंडिया न्यूज़ पर एक डिबेट करनी थी,ना जाने क्यूँ चौरसिया जी ने वह डिबेट रद्द कर दी,यह वही दीपक चौरसिया है जिन्होंने अन्ना के रामलीला मैदान में आई जनता को आन्दोलन को 200 रुपया की भीड़ कहा था,यह वही दीपक चौरसिया जी हैं जिन्हें अभी उन्हीं के प्रेस परिषद् के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने साक्षात्कार देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि"गेट आउट,तुम आधा सच और आधा झूठ दिखाते हो",यह वही दीपक चौरसिया हैं जिन्होंने लोकपाल बिल पर जब राज्यसभा में सभापति ने राजीव शुक्ला के कहने पर राज्य सभा की कार्यवाही रात के 12 बजते ही समाप्त कर दी थी तब दीपक चौरसिया ने सबसे पहले राजीव शुक्ला का इंटरव्यू लिया था कैसे ....यह सवाल तब भी मेरे मन में था ।


      दीपक जी आपकी भ्रष्ट,एक पक्षीय और बिकाऊ पत्रकारिता के बारे में इतना ही कहना है कि ....

      "बन कर हादसा बाज़ार में आ जाएगा,
      जो होगा नहीं वो अखबार(आपके चैनल ) में आ जाएगा ,
      थोड़ी चोर उचक्कों की भी कदर कर लिया करो,
      ना जाने कौन सी सरकार में आ जाएगा "

      "दलालों पत्रकारिता छोडो,
      पत्रकारों दलाली छोड़ो "

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    2. पर मै विचार के साथ कुछ सवाल भी किये जैसे एकजुटता के बारे मे. पुरे भारत के राष्ट्र्वादियो मे अहन्कार कहा से आ जाता है ?इसी बिखराव के कारण ही तो काग्रेस 65 सालो से एकक्षत्र राज कर रही है . बीच मे चार छह सालो का गेप था वो भी अल्पबहुमत वाली सरकारो के कारण और सारी बुराई को उसी सरकार पर थोप दिया जाता है .
      अब आप कहे कि ये भाजपा समर्थित व्यक्ति होगा . जबकि भाजपा से मेरा दुर दुर तक नाता नही . थोडी सी लोकप्रियता क्या मिली आप काग्रेस रुपी पहाड् को अकेले ही उखाडने को सोच लिये

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    3. ashutosh ke baare me kya khyal hai or TV18 Network ke baare me

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  2. वीरेंद्र भाई आपकी बात से मैं सहमत नही हूँ की राष्ट्रवादियो में अहंकार आ जाता है...
    कांग्रेस जैसी पार्टी जीतती है उन लोगो के कारण जो दिल्ली की सडको पर उसके घोटालो के खिलाफ बाहर तो निकलते है पर वोट देने के लिए बाहर नही निकलते है....
    कांग्रेस जैसी देश की माह भ्रष्टाचारी पार्टी आज भी जित रही है तो वो हमारे ही कारण..
    और "आम आदमी पार्टी" इस देश की जरूरत थी.. ना की किसी का अहंकार यदि कोई और पार्टी हमारी बाते मान लेती या संसद भ्रष्टाचार के विरुद्ध के कड़ा कानून बना देती तो "आप" की आवश्यकता नही होती.
    वर्तमान राजनितिक दलों को ६५ साल से झेल तो रहे है हम..

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