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शनिवार, 3 नवंबर 2012

1984 के सिख विरोधी दंगों पर आस्ट्रेलियाई संसद में 'नरसंहार प्रस्ताव'

यह प्रश्न कांग्रेस के ही खिलाफ हे की, उस पर देश का कानून क्यों लागू  नहीं होता ......
मोदी या किसी भी दूसरे से प्रश्न करने से पहले कांग्रेस को इस प्रश्न का जबाब देना ही होगा की उसके खिलाफ किसी भी अपराध का कोई दोषी क्यों नहीं होता ?????????????????????.......................
यह देश के संघीय ढांचे का मखोल नहीं हे क्या की कांग्रेस से जड़े अनेकों अपराधों पर आज तक किसी कोई कार्यवाही नहीं हुई और मामले हमेशा रफा दफा कर दिए गए। बोफोर्स से लेकर वाड्रा तक यही हुआ।।।।।।।। 



 आस्ट्रेलिया में एक सांसद ने नवम्बर 1984 में भारत में भड़के सिख विरोधी दंगों को भयानक हिंसा करार देने की आस्ट्रेलिया सरकार से मांग करते हुए संसद में एक 'नरसंहार प्रस्ताव' पेश करने का निर्णय लिया है। ये दंगे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए थे।
सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद राजधानी नई दिल्ली में तीन दिनों तक चले दंगों में कम से कम 3,000 सिख मारे गए थे।
सुप्रीम सिख काउंसिल ऑफ आस्ट्रेलिया की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि आस्ट्रेलियाई संघीय संसद के सदस्य, वॉरेन एंटस आस्ट्रेलियाई संसद में 'नरसंहार प्रस्ताव' पेश करेंगे। यह प्रस्ताव पहली नवम्बर को स्थगन बहस के दौरान हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में पेश किया जाएगा।
प्रस्ताव में आस्ट्रेलियाई सरकार से इस तथ्य को मान्यता देने की मांग की जाएगी कि नवम्बर 1984 में सिख समुदाय के खिलाफ भयानक हिंसा का एक संगठित अभियान चला था, और उस दौरान हुई हत्याएं नरसंहार के प्रतिशेध एवं दंड सम्बंधी संयुक्त राष्ट्र के समझौते के तहत 'नरसंहार' थीं।
मौजूदा समय में लिबरल पार्टी ऑफ आस्ट्रेलिया के मुख्य विपक्षी सचेतक वॉरेन ने कहा कि उन्होंने इसलिए इस प्रस्ताव का समर्थन करने का निर्णय लिया, क्योंकि सिखों के साथ अतीत में हुए और वर्तमान में हो रहे बर्ताव से वह भयभीत हैं। 
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1984 दंगा: आस्ट्रेलिया की संसद में याचिका दायर

2 टिप्‍पणियां:

  1. jab tak log kisi ek party ko vote dete rahenge tab tak uska koi apradh siddh nahin ho sakta hai kyonki loktantra mein har baat maton se hi siddh ki jati hai . supreme court mein bhi yadi judges mein kisi vishay par matbhed ho to nirnay bahumat ke aadhar par hi hota hai isliye jab har baat ka nirnay vote se hi hona hai to uske liye dimaag ladane ki koi jaroorat hi nahin hai. vote dene vaale log yadi dimag ka prayog kar vote dete to unmein ekta hoti kyonki buddhi praman sapekshya hoti hai , isliye pramank arth mein matbhed nahin hota . jo kala hai wo sabke liye kala hai . kyonki kale ka gyan aankhon se hota hai aur aankhen sabke paas hain ,isi tarah jis vishay ka gyan jis praman se hota hai vah praman jitnon ke paas hoga unme us vishay par matbhed nahin hoga , un sabko us vishay ka gyan saman hi hoga . parantu yadi unmein matbhed hai to iska arth yah hai ki unka gyan manmani hai , pramanik nahin. pramanik nahin hone se us vishay mein nirnay bahumat ke aadhar par hota hai . bahumat ka arth hi hai manmaani ya shuddha bebkufi.

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    1. मित्र वाचस्पति जी में आपकी इस लोकतंत्र की परिभासा से सहमत नही हूँ..
      इस देश के नेताओ ने अगर लुट तन्त्र और धन तन्त्र, भीड़ तन्त्र को ही लोकतंत्र मान लिया है तो उन्हें अपने वोट से हमे झुकाना होगा.. ना की जो वो चाहते है व्ही मान लेना होगा :)

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